नागपंचमी (श्रावण पंचमी) २५ जुलाई विशेष
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर भक्त नागदेवता के दर्शन व पूजा करते हैं। सिर्फ मंदिरों में ही नहीं बल्कि घर-घर में इस दिन नागदेवता की पूजा करने का विधान है।
ऐसी मान्यता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता का पूजन करता है उसे व उसके परिवार को कभी भी सर्प भय नहीं होता। इस बार यह पर्व २५ जुलाई, शनिवार को है।
पूजन विधि
नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें नागों की पूजा शिव के अंश के रूप में और शिव के आभूषण के रूप में ही की जाती है। क्योंकि नागों का कोई अपना अस्तित्व नहीं है। अगर वो शिव के गले में नहीं होते तो उनका क्या होता। इसलिए पहले भगवान शिव का पूजन करते हैं। इसके बाद शिवजी के गले में विराजमान नागों की पूजा करते हैं। नागों को हल्दी, रोली, चावल और फूल अर्पित करते हैं। इसके बाद चने, खील बताशे और कच्चा दूध प्रतिकात्मक रूप से अर्पित करते हैं।
घर के मुख्य द्वार पर गोबर, गेरू या मिट्टी से सर्प की आकृति बनाते हैं और इसकी पूजा करते हैं।
घर के मुख्य द्वार पर सर्प की आकृति बनाने से जहां आर्थिक लाभ होता है, वहीं घर पर आने वाली विपत्तियां भी टल जाती हैं।
(विभिन्न क्षेत्रीय मान्यताओं और परम्पराओं में पुजा विधि में कुछ असमानता सम्भव है ।)
नागपंचमी
महाभारत आदि ग्रंथों में नागों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख हैं। नागपंचमी के अवसर पर हम आपको ग्रंथों में वर्णित प्रमुख नागों के बारे में बता रहे हैं।
तक्षक नाग
धर्म ग्रंथों के अनुसार, तक्षक पातालवासी आठ नागों में से एक है। तक्षक के संदर्भ में महाभारत में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार, श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। तक्षक से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। यह देखकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गया।
जैसे ही ऋत्विजों (यज्ञ करने वाले ब्राह्मण) ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तिक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। उसी समय आस्तिक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ रोक दिया और तक्षक के प्राण बच गए।
कर्कोटक नाग
कर्कोटक शिव के एक गण हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सर्पों की मां कद्रू ने जब नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब भयभीत होकर कंबल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए।
ब्रह्माजी के कहने पर कर्कोटक नाग ने महाकाल वन में महामाया के सामने स्थित लिंग की स्तुति की। शिव ने प्रसन्न होकर कहा- जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा। इसके बाद कर्कोटक नाग उसी शिवलिंग में प्रवेश कर गया। तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं। मान्यता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार के दिन कर्कोटेश्वर शिवलिंग की पूजा करते हैं उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती।
कालिया नाग
श्रीमद्भागवत के अनुसार, कालिया नाग यमुना नदी में अपनी पत्नियों के साथ निवास करता था। उसके जहर से यमुना नदी का पानी भी जहरीला हो गया था। श्रीकृष्ण ने जब यह देखा तो वे लीलावश यमुना नदी में कूद गए। यहां कालिया नाग व भगवान श्रीकृष्ण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंत में श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को पराजित कर दिया। तब कालिया नाग की पत्नियों ने श्रीकृष्ण से कालिया नाग को छोडऩे के लिए प्रार्थना की। तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि तुम सब यमुना नदी को छोड़कर कहीं और निवास करो। श्रीकृष्ण के कहने पर कालिया नाग परिवार सहित यमुना नदी छोड़कर कहीं और चला गया।
इनके अलावा कंबल, शंखपाल, पद्म व महापद्म आदि नाग भी धर्म ग्रंथों में पूज्यनीय बताए गए हैं।
उज्जैन के मंदिर नागचंद्रेश्वर की कहानी.....
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी मनाई जाती है, इस दिन नागों की पूजा का विधान है। देशभर में नागों के कई मंदिर स्थापित हैं, उनमें से ही महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थित है नागचंद्रेश्वर मंदिर। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसके कपाट सिर्फ नाग पंचमी के दिन यानी श्रावण शुक्ल पंचमी को खुलते हैं। यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के प्रांगण में ही स्थित है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नाग पंचमी के दिन जब इस मंदिर के कपाट पूजा के लिए खोले जाते हैं तो नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में उपस्थित रहते हैं।
कहा जाता है कि जो प्रतिमा यहां है वो दुनिया में कहीं और नहीं है। इस प्रतिमा को नेपाल से यहां लाया गया था। नागचंद्रेश्वर मंदिर की ये प्रतिमा 11वीं शताब्दी की है। इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। मान्यताएं तो यहां तक हैं कि पूरी दुनिया में यही एक ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में जो प्राचीन मूर्ति स्थापित है उस पर शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं।
यह प्रतिमा मराठाकालीन कला का उत्कृष्ट नमूना है। यह प्रतिमा शिव-शक्ति का साकार रूप है।
नागपंचमी कथा
शेषनाग के फन पर पृथ्वी टिकी है। भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग
की शैय्या पर सोते हैं। शिवजी के
गले में सर्पों का हार है। कृष्ण जन्म पर नाग की सहायता से ही वासुदेवजी ने यमुना पार की थी। यहां तक कि समुद्र-मंथन के समय देवताओं की मदद भी वासुकी नाग ने ही की थी।
नागपंचमी कथा १
किसी राज्य में एक किसान परिवार रहता था। किसान के दो पुत्र व एक पुत्री
थी। एक दिन हल जोतते समय हल से नाग के तीन बच्चे कुचल कर मर गए। नागिन पहले तो विलाप करती रही फिर उसने अपनी संतान के हत्यारे से बदला लेने का संकल्प किया। रात्रि को अंधकार में नागिन ने किसान, उसकी पत्नी व दोनों
लड़कों को डस लिया। अगले दिन प्रातः किसान की पुत्री को डसने के उद्देश्य से नागिन फिर चली तो किसान कन्या ने उसके सामने दूध का भरा कटोरा रख दिया। हाथ जोड़ क्षमा मांगने लगी।
नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को पुनः जीवित कर दिया। उस दिन श्रावण शुक्ल पंचमी थी। तब से
आज तक नागों के कोप से बचने के लिए इस दिन नागों की पूजा की जाती है।
नागपंचमी कथा- २
एक राजा के सात पुत्र थे, उन सबके विवाह हो चुके थे। उनमें से छह पुत्रों के संतान भी हो चुकी थी। सबसे छोटे
पुत्र के अब तक के कोई संतान नहीं हुई, उसकी बहू को जिठानियां बांझ कहकर बहुत ताने देती थीं। एक तो संतान न होने का दुःख और उस पर सास, ननद, जिठानी आदि के ताने उसको और भी दुखी करने लगे। इससे व्याकुल होकर वह
बेचारी रोने लगती। उसका पति समझाता कि 'संतान होना या न होना तो भाग्य के अधीन है, फिर तू क्यों दुःखी होती है?' वह
कहती- सुनते हो, सब लोग बांझ- बांझ कहकर मेरी नाक में दम किए हैं।
पति बोला- दुनिया बकती है, बकने दे मैं तो कुछ नहीं कहता। तू मेरी ओर ध्यान दे और दुःख को छोड़कर प्रसन्न रह। पति की बात सुनकर उसे कुछ सांत्वना मिलती, परंतु फिर जब कोई ताने देता तो
रोने लगती थी। इस प्रकार एक दिन नाग पंचमी आ गई। चौथ की रात को उसे स्वप्न
में पांच नाग दिखाई दिए, उनमें एक ने कहा- 'अरी पुत्री। कल नागपंचमी है, तू अगर हमारा पूजन करे तो तुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो सकती है। यह सुनकर वह उठ बैठी और पति को जगाकर
स्वप्न का हाल सुनाया। पति ने कहा- यह कौन सी बड़ी बात है?
पांच नाग अगर दिखाई दिए हैं तो पांचों की आकृति बनाकर उसका पूजन कर देना। नाग लोग ठंडा भोजन ग्रहण करते हैं, इसलिए उन्हें कच्चे दूध से प्रसन्न करना। दूसरे दिन उसने ठीक वैसा ही किया। नागों के पूजन से उसे नौ मास के बाद सुंदर पुत्र की प्राप्ति
(यह लेख विभिन्न श्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है,इसका उद्देश्य किसी परम्परा/भावना की उपेक्षा करना नहीं है।)
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर भक्त नागदेवता के दर्शन व पूजा करते हैं। सिर्फ मंदिरों में ही नहीं बल्कि घर-घर में इस दिन नागदेवता की पूजा करने का विधान है।
ऐसी मान्यता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता का पूजन करता है उसे व उसके परिवार को कभी भी सर्प भय नहीं होता। इस बार यह पर्व २५ जुलाई, शनिवार को है।
पूजन विधि
नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें नागों की पूजा शिव के अंश के रूप में और शिव के आभूषण के रूप में ही की जाती है। क्योंकि नागों का कोई अपना अस्तित्व नहीं है। अगर वो शिव के गले में नहीं होते तो उनका क्या होता। इसलिए पहले भगवान शिव का पूजन करते हैं। इसके बाद शिवजी के गले में विराजमान नागों की पूजा करते हैं। नागों को हल्दी, रोली, चावल और फूल अर्पित करते हैं। इसके बाद चने, खील बताशे और कच्चा दूध प्रतिकात्मक रूप से अर्पित करते हैं।
घर के मुख्य द्वार पर गोबर, गेरू या मिट्टी से सर्प की आकृति बनाते हैं और इसकी पूजा करते हैं।
घर के मुख्य द्वार पर सर्प की आकृति बनाने से जहां आर्थिक लाभ होता है, वहीं घर पर आने वाली विपत्तियां भी टल जाती हैं।
(विभिन्न क्षेत्रीय मान्यताओं और परम्पराओं में पुजा विधि में कुछ असमानता सम्भव है ।)
नागपंचमी
महाभारत आदि ग्रंथों में नागों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख हैं। नागपंचमी के अवसर पर हम आपको ग्रंथों में वर्णित प्रमुख नागों के बारे में बता रहे हैं।
तक्षक नाग
धर्म ग्रंथों के अनुसार, तक्षक पातालवासी आठ नागों में से एक है। तक्षक के संदर्भ में महाभारत में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार, श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। तक्षक से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। यह देखकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गया।
जैसे ही ऋत्विजों (यज्ञ करने वाले ब्राह्मण) ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तिक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। उसी समय आस्तिक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ रोक दिया और तक्षक के प्राण बच गए।
कर्कोटक नाग
कर्कोटक शिव के एक गण हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सर्पों की मां कद्रू ने जब नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब भयभीत होकर कंबल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए।
ब्रह्माजी के कहने पर कर्कोटक नाग ने महाकाल वन में महामाया के सामने स्थित लिंग की स्तुति की। शिव ने प्रसन्न होकर कहा- जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा। इसके बाद कर्कोटक नाग उसी शिवलिंग में प्रवेश कर गया। तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं। मान्यता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार के दिन कर्कोटेश्वर शिवलिंग की पूजा करते हैं उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती।
कालिया नाग
श्रीमद्भागवत के अनुसार, कालिया नाग यमुना नदी में अपनी पत्नियों के साथ निवास करता था। उसके जहर से यमुना नदी का पानी भी जहरीला हो गया था। श्रीकृष्ण ने जब यह देखा तो वे लीलावश यमुना नदी में कूद गए। यहां कालिया नाग व भगवान श्रीकृष्ण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंत में श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को पराजित कर दिया। तब कालिया नाग की पत्नियों ने श्रीकृष्ण से कालिया नाग को छोडऩे के लिए प्रार्थना की। तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि तुम सब यमुना नदी को छोड़कर कहीं और निवास करो। श्रीकृष्ण के कहने पर कालिया नाग परिवार सहित यमुना नदी छोड़कर कहीं और चला गया।
इनके अलावा कंबल, शंखपाल, पद्म व महापद्म आदि नाग भी धर्म ग्रंथों में पूज्यनीय बताए गए हैं।
उज्जैन के मंदिर नागचंद्रेश्वर की कहानी.....
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी मनाई जाती है, इस दिन नागों की पूजा का विधान है। देशभर में नागों के कई मंदिर स्थापित हैं, उनमें से ही महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थित है नागचंद्रेश्वर मंदिर। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसके कपाट सिर्फ नाग पंचमी के दिन यानी श्रावण शुक्ल पंचमी को खुलते हैं। यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के प्रांगण में ही स्थित है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नाग पंचमी के दिन जब इस मंदिर के कपाट पूजा के लिए खोले जाते हैं तो नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में उपस्थित रहते हैं।
कहा जाता है कि जो प्रतिमा यहां है वो दुनिया में कहीं और नहीं है। इस प्रतिमा को नेपाल से यहां लाया गया था। नागचंद्रेश्वर मंदिर की ये प्रतिमा 11वीं शताब्दी की है। इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। मान्यताएं तो यहां तक हैं कि पूरी दुनिया में यही एक ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में जो प्राचीन मूर्ति स्थापित है उस पर शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं।
यह प्रतिमा मराठाकालीन कला का उत्कृष्ट नमूना है। यह प्रतिमा शिव-शक्ति का साकार रूप है।
नागपंचमी कथा
शेषनाग के फन पर पृथ्वी टिकी है। भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग
की शैय्या पर सोते हैं। शिवजी के
गले में सर्पों का हार है। कृष्ण जन्म पर नाग की सहायता से ही वासुदेवजी ने यमुना पार की थी। यहां तक कि समुद्र-मंथन के समय देवताओं की मदद भी वासुकी नाग ने ही की थी।
नागपंचमी कथा १
किसी राज्य में एक किसान परिवार रहता था। किसान के दो पुत्र व एक पुत्री
थी। एक दिन हल जोतते समय हल से नाग के तीन बच्चे कुचल कर मर गए। नागिन पहले तो विलाप करती रही फिर उसने अपनी संतान के हत्यारे से बदला लेने का संकल्प किया। रात्रि को अंधकार में नागिन ने किसान, उसकी पत्नी व दोनों
लड़कों को डस लिया। अगले दिन प्रातः किसान की पुत्री को डसने के उद्देश्य से नागिन फिर चली तो किसान कन्या ने उसके सामने दूध का भरा कटोरा रख दिया। हाथ जोड़ क्षमा मांगने लगी।
नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को पुनः जीवित कर दिया। उस दिन श्रावण शुक्ल पंचमी थी। तब से
आज तक नागों के कोप से बचने के लिए इस दिन नागों की पूजा की जाती है।
नागपंचमी कथा- २
एक राजा के सात पुत्र थे, उन सबके विवाह हो चुके थे। उनमें से छह पुत्रों के संतान भी हो चुकी थी। सबसे छोटे
पुत्र के अब तक के कोई संतान नहीं हुई, उसकी बहू को जिठानियां बांझ कहकर बहुत ताने देती थीं। एक तो संतान न होने का दुःख और उस पर सास, ननद, जिठानी आदि के ताने उसको और भी दुखी करने लगे। इससे व्याकुल होकर वह
बेचारी रोने लगती। उसका पति समझाता कि 'संतान होना या न होना तो भाग्य के अधीन है, फिर तू क्यों दुःखी होती है?' वह
कहती- सुनते हो, सब लोग बांझ- बांझ कहकर मेरी नाक में दम किए हैं।
पति बोला- दुनिया बकती है, बकने दे मैं तो कुछ नहीं कहता। तू मेरी ओर ध्यान दे और दुःख को छोड़कर प्रसन्न रह। पति की बात सुनकर उसे कुछ सांत्वना मिलती, परंतु फिर जब कोई ताने देता तो
रोने लगती थी। इस प्रकार एक दिन नाग पंचमी आ गई। चौथ की रात को उसे स्वप्न
में पांच नाग दिखाई दिए, उनमें एक ने कहा- 'अरी पुत्री। कल नागपंचमी है, तू अगर हमारा पूजन करे तो तुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो सकती है। यह सुनकर वह उठ बैठी और पति को जगाकर
स्वप्न का हाल सुनाया। पति ने कहा- यह कौन सी बड़ी बात है?
पांच नाग अगर दिखाई दिए हैं तो पांचों की आकृति बनाकर उसका पूजन कर देना। नाग लोग ठंडा भोजन ग्रहण करते हैं, इसलिए उन्हें कच्चे दूध से प्रसन्न करना। दूसरे दिन उसने ठीक वैसा ही किया। नागों के पूजन से उसे नौ मास के बाद सुंदर पुत्र की प्राप्ति
(यह लेख विभिन्न श्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है,इसका उद्देश्य किसी परम्परा/भावना की उपेक्षा करना नहीं है।)
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