प्रत्येक वस्तु अथवा व्यक्ति को सम्मान देने की आदत समाज में दूसरों की नजरों में हमारे सम्मान को बढ़ा देगी । जीवन तो ऐसा होना चाहिए जहाँ सबकी स्वीकारोक्ति हो।
अगर तिरस्कृतों से, उपेक्षितों से और परित्यक्तों से भी हमारे हृदय में प्रेम है तो निश्चित ही ऐसा उदार व्यक्तित्व समाज में पूज्यनीय बन जायेगा।
तिरस्कार और उपेक्षा करने से दूरियाँ और बढ़ जाती हैं, परिवार हो चाहे समाज। स्वीकार कर लेने से ही सृजन के रास्ते जन्म लेते हैं।
हमें सबका सम्मान करना सीखना होगा, क्योंकि सम्मान दिए बिना किसी को सम्मान नहीं मिला करता। प्राणी मात्र से प्रेम और प्राणी मात्र का हित ही सही मायने में इन्सान बनने का एकमात्र रास्ता है।
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