वर्तमान परिवेश में सम्भवतः कोई भी मनुष्य अपने जीवन काल किसी भी व्यक्ति को पुरी तरह/सदा खुश/सन्तुष्ट नहीं कर सकता; चाहे वह पिता,माता भाई,बहन,मित्र,पत्नी या संतान, अधिकारी, सहकर्मी, अधिनस्थ कोई भी क्यों न हो । अपने जीवन में हम कितना भी प्रयास कर लें यह सफलता हम शायद ही अर्जित कर पावें लेकिन सबको सन्तुष्ट करने के चक्कर में हम धीरे धीरे अपनी आत्मिक खुशी, अपनी इच्छा, अपने आत्मसम्मान, अपने अस्तित्व का गला कब दबा देते हैं पता ही नहीं चलता ।
इसलिए जीवन में अपना अस्तित्व और आत्मसम्मान बनाये रखते हुए किसी को भी सन्तुष्ट करने का प्रयास करना चाहिए सामने कोई जो भी हो, मात्र ध्यान यह रहे कि अनर्गल किसी के सम्मान को कोई ठेस हमसे न लगे ।
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