स्वयं/वृद्धावस्था के लिए धन बचत करना अब अनिवार्य हो गया है। वर्तमान परिवेश में वृद्धावस्था के लिए धन बचाना बहुत ही आवश्यक हो गया है क्योंकि की सम्भव है हमारे जीवन का अन्तिम पड़ाव अंधकार या कालीमायुक्त होना आश्चर्यजनक नहीं होगा।
कुछ दिनों पुर्व पंजाब के बटिण्डा से एक अमानवीय , दिल को झकझोरने वाली घटना प्रकाश में आयी जिसमे एक ऐसी वृद्ध महिला जिनका एक पुत्र बड़ा अधिकारी, दुसरा रसुकदार नेता और पोती उच्च पुलिस अधिकारी हैं, ईट/मिट्टी के छोटे छोटे दिवालों पर प्लाईवुड का छत बनाकर अपना जीवन व्यतीत कर रही थीं और उनके सर में कीड़े भी लग गये थे ।
बच्चों द्वारा अपने वृद्ध माता पिता को अकेला छोड़ देना आम बात होती जा रही है, इसके पीछे कहीं न कहीं आधुनिक शिक्षा के नाम पर हमारी पुरातन संस्कृति, सभ्यता, संस्कार और परम्परा का लोप होना है ।
वृद्धावस्था और बाल्यावस्था लगभग एक समान ही है जिसमें उतावलापन, बार बार गलती या असावधानी आम होता है जिसके परिणाम स्वरुप बच्चों के साथ साथ वृद्धों को झिडका जाना सामान्य बात सी हो गयी है वृद्धों को तो अब कठोर वचन भी सुनने पडते हैं। वृद्धों का अपमान और कठोर वचन उनके लिए शारीरिक दण्ड से भी बढकर है।
वर्तमान परिवेश अर्थ प्रधान हो गयी है, जिसके पास धन दौलत है उसी की लोग जी हुजुरी करते हैं, जीवन का वह पड़ाव जिसमें हम श्रम नहीं कर सकते और हमारे पास पैसे हैं और हम किसी पर निर्भर नहीं हैं तो हमारा अनादर होने की सम्भावना न के बराबर होगी।
अधिकांश व्यक्ति युवावस्था में भावनाओं के वशीभूत अपनी पुरी कमाई परिवार के पोषण, भौतिक संसाधनों की पूर्ति, दिखावे के बडकपन और अपने मौज मस्ती में फुँक कर वृद्धावस्था में खाली हाथ/तंग हाल/ पराश्रयी हो जाते हैं और ऐसे व्यक्ति की जीवन की उस विवश अवस्था में बहुत ही दयनीय हो जाती है।
इस वर्तमान परिवेश में ही जहाँ बहुत से वृद्धजन दीन हीन दशा में हैं वहीं कई सारे वृद्ध किसी पर आश्रित न हो कर अपना जीवन मौज मस्ती में अपने शर्तों पर जी रहे हैं।
अब वर्तमान परिस्थिति तो यही वयाँ कर रही है कि हम अपने वृद्धावस्था के लिए आज ही बचत कर लें या आज से ही बचत करना प्रारम्भ कर दें क्योंकि हमारी उम्र का वह पड़ाव जो पौरुष विहीन हो जाती है उसमें हमारा बचत किया गया धन ही हमारा सबसे बड़ा हितैषी और सहयोगी सिद्ध होगा।
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