अभिजीत मिश्र

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Saturday, August 22, 2020

गणेश चतुर्थी (भाद्र पद शुक्ल पक्ष चतुर्थी) विशेष

         

 भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को‌ गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है । इस दिन सनातनी परिवारों के घरों और सार्वजनिक स्थानों पर विघ्न विनाशक भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित कर बड़े ही धुम धाम से पुजा अर्चना की जाती है, लेकिन क्या कभी हमने सोचा कि भगवान गणेश की शारीरिक संरचना हमें क्या सीख देती है ??

आज इसी सीख पर ध्यान आकर्षित करते हैं ......

             भगवान गणेश के शरीर का हर अंग और उनसे जुड़ी हर कहानी हमें एक अद्भुत सीख देती है । इन्हीं कहानियों में कहानी प्रचलित है कि माता पार्वती स्नान को जाने से पुर्व घर के प्रवेश द्वार पर भगवान गणेश को प्रहरी बना कर आदेशित करती हैं कि कोई अन्दर न आवे उसी बीच प्रभु शंकर लम्बे तप के बाद वापस आते हैं और भगवान गणेश द्वारा घर में प्रवेश करने पर रोकने से उनका सर काट देते हैं और जानकारी होने पर हाथी का सर लगा देते हैं ( यहाँ ध्यान देना चाहिए कि सर अलग करते हैं यह कभी नहीं कहा जाता कि हत्या किये) जो प्रतिक है अहंकार रुपी सर को शरीर से अलग कर एक विकार मुक्त शरीर प्रदान करने का ।

             अब बात करते हैं भगवान गणेश के एक एक अंग के बनावट और उससे प्राप्त शिक्षा के बारे में..

१. बड़ा सर और छोटी आँखें-- 

       बड़ा सर और छोटी आँखें प्रतिक हैं विशाल और दूरदर्शी बुद्धि की क्योंकि अक्सर हम अनुभव किये होंगें कि जब हम किसी दुर की वस्तु को तेज प्रकाश में देखते हैं तो हमारी आँखें भींच कर छोटी हो जाती हैं, यह हमें‌ सीख देती हैं कि हम अच्छी तरह सोच विचार कर दूरगामी परिणाम को सोचकर कोई काम करें

२. छोटा मुँह ---

                 भगवान श्री गणेश के मुँह से हमें कम बोलने की सीख मिलती है क्योंकि अधिकांश विवाद की जड हमारे अनावश्यक बातों में ही समाहित होती है

३. बड़े और सूप के आकार के कान --

             अक्सर हम सुनकते और कहते हैं कि एक कान से सुनो और दुसरे से निकाल दो लेकिन यह हम भुल जाते हैं कि दोनों कानों के बीच में दिमाग आता है और अनर्गल बातें कुछ न कुछ प्रभाव तो छोड़ ही देती हैं इसलिए

          भगवान गणेश के कानों से हमें सीख मिलती है कि हमें ज्यादा और ध्यान से सुनना है लेकिन केवल अच्छी, सार्थक और सकारात्मक बातें बुरी बातों पर ध्यान ही नहीं देना है

४. दो दाँत जिनमें से एक टुटा हुआ---

       गणेश जी को एकदन्ताय भी कहते हैं जो प्रतिक है एकात्मकता ( वसुधैव कुटुम्बकम् ) का जाति पाति, ऊँच नीच का भेद भुला कर एक होने का।

५. सुँढ---

             हम सभी ध्यान दिये होंगें हाथी अपने सुढ से बड़े से बड़ा, भारी से भारी वस्तु भी उखाड/उठा लेता है और बड़ी कोमलता से बच्चे को भी अर्थात सुँढ हमें सीख देता है ताकत और कोमलता, कठोरता और प्यार का जीवन में उचित संतुलन बनाये रखने का ।

६. चार भुजाए--

        # एक भुजा में कुल्हाड़ी -- जो हमें सन्देश देती है अपने विकारों, नकारात्मकता, अवगुणों को काट फेंकने का।

        # दुसरी भुजा में रस्सी/कमल -- जो हमें सन्देश देती है संस्कारों, अनुशासन, मर्यादा में आजीवन बंधे रहने का।

        # तीसरी भुजा आशीष मुद्रा --- हम सभी केवल लेने के पीछे भागे जा रहे हैं  प्रतिष्ठा,सहयोग,धन आदि के पीछे। यह तीसरी भुजा हमें ज्ञान देता है कि हम सदैव औरों को देने के लिए तैयार रहें सहयोग,प्रार्थना, आर्शीवाद आदि दें चाहे वह किसी भी विचार का हो ।

          # चौथी भुजा में होता है मोदक--

 भगवान के चौथी‌ भुजा में मोदक होता है लेकिन कभी भी खाते हुए दिखायी नहीं देता हमेशा गणेश जी यह मोदक लिये रहते हैं, मोदक बनाना कठिन है लेकिन होता बहुत स्वादिष्ट है जो यह प्रदर्शित करता है कि अपने जीवन में इतना कुछ करने/परिश्रम करने से फल मीठा तो मिलेगा ही लेकिन हमें इससे प्राप्त सफलता, पद,प्रतिष्ठा,धन आदि को सदैव सम्भाल के रखना चाहिए अहंकार रहित होकर।

७. पैर ---

           प्रभु गणेश को जब भी बैठने की मुद्रा में दिखाया जाता है तो उनका एक पैर मुड़ा रहता है और एक जमीन पर रहता है जो यह प्रदर्शित करता है कि हमें अपनी सफलताओं के साथ इसी धरा पर रहते हुए रिश्तों और कर्मों का निर्वहन करना है लेकिन ऐसे कि किसी का प्रभाव कुसंस्कार हमें प्रभावित न कर सके अर्थात सबके बीच भी रहें और सबसे बच कर भी रहें।

८. चुहा सवारी -- 

                    प्रभु गणेश की सवारी है चुहा जिस पर प्रभु का नियन्त्रण होता है, चुहा छोटे से जगह से प्रवेश कर जाता है और हमेशा कुछ न कुछ कुतरता रहता है जो हमारी‌ कर्मेन्दियों का प्रतिक है जो हमेशा कुछ न कुछ करती रहती हैं और बुरी आदतें कब हमारे जीवन में प्रवेश कर जाती हैं हमें पता नहीं चलता, इसलिए गणेश जी का जिस प्रकार चुहे पर नियन्त्रण होता है उसी प्रकार हमें अपने कर्मेंद्रियों पर भी नियन्त्रण रखने का प्रयास करना चाहिए ।

९. माता पिता की परिक्रमा ----

                  हम सभी धन, वैभव,खुशी,स्वास्थ्य, आदि के लिए भागे भागे फिरते हैं।

           भगवान गणेश ने अन्य देवताओं की तरह सम्पूर्ण लोकों का परिक्रमा न करके अपने माता पिता का परिक्रमा कर के यह ज्ञान दिया कि हम परमात्मा रुपी अपने माता पिता की ही सेवा (परिक्रमा) करें तो हमें भागने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी ।

१०. रिद्धि - सिद्धि---

                भगवान गणेश के एक तरफ रिद्धि और दुसरी तरफ सिद्धि रहती है जो यह ज्ञान देती हैं कि हम जब इतना प्रयास मेहनत करके अपने इन्द्रियों को नियन्त्रित कर लेंगें तो धन, वैभव, सुख, शान्ति सदैव हमारे साथ रहेंगी।

               इस गणेश चतुर्थी से हम विघ्न हर्ता श्री गणेश की पुजा अर्चना करने के साथ ही उनके जीवन/शारीरिक संरचना से सीख लेते हुए अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें ।

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