अभिजीत मिश्र

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Sunday, August 9, 2020

परिवार ईश्वर का आर्शीवाद

 

वर्तमान समय में प्रत्येक समाज में और यदि देखें तो लगभग प्रत्येक परिवार में ऐसे महान लोग उपस्थित हैं जो दूसरों की निंदा,चुगली करके, कान भरके, घर परिवार और समाज की एकता को खंडित करते हैं। अपने ही परिवार के सदस्यों में मनमुटाव पैदा करते हैं।

              वो व्यक्ति जो अपने जीवन में परिवार के मान, सम्मान, प्रतिष्ठा और परिवार के सामाजिक व रहन सहन के स्तर को बढाने के लिए समर्पित रहते हुए लगभग अपना सब कुछ लगा देता है और उसके जीवन में एक पड़ाव ऐसा आता है जब उसे परिवार में लोगों के प्यार, सहयोग, सानिध्य की आवश्यकता होती है  तो लोग उसकी उपेक्षा करने लगते हैं, उपेक्षित करने के लिए वही कार्य करते हैं जो उसे पसन्द न हो भले ही उस कार्य से परिवारिक प्रतिष्ठा जाती हो, उसके बातों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगते हैं । परिवार के ऐसे सदस्य जो उस व्यक्ति के सामने पैदा हुए हैं वह भी ज्ञानी और स्वामी बन जाते हैं। अब तो माता पिता पर ही आरोप लगते थे कि वह अपने बेटी के परिवार में हस्तक्षेप कर परिवार के खण्डित होने का रास्ता बना रहे हैं लेकिन अब तो आधुनिक कही जाने वाली बेटियाँ जो ईश्वर की कृपा‌ से सम्पन्न और स्वतंत्र/एकल परिवार में पहुँच गयी हैं वह अपने पिहर में अपनी सलाह देनें लगी हैं जो कहीं न कहीं मतभेद/मनभेद और पारिवारिक विघटन का मार्ग प्रसस्त करता है।

    ‌‌‌‌‌‌‌‌      ऐसे लोग यह भुल जाते हैं कि परिवार ईश्वर का दिया हुआ आर्शीवाद है, प्रसाद है और वे लोग ऐसा करके खुद अपने पैर पर स्वयं ही कुल्हाड़ी चला रहे हैं। 

         ‌‌‌  इस विचार के लोग यह क्यों भुल जाते हैं कि परिवार ही है जो सुख दुःख में काम आता, बाहर के नाते काम नहीं आते और यदि आते भी हैं तो अल्पकालिक।

            ईश्वर इस तरह के लोगों को संकेत भी देते हैं कि ऐसा न करो लेकिन अपने अहंकार में इस संकेत को वे नहीं समझते हैं।

           ईश्वर ऐसे लोगों से अप्रसन्न होते हैं और दण्डित भी करते हैं, आखिर कर्म फल तो भोगने ही पडते हैं 'बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय।'

          इसलिए परिवार के उस सदस्य को सम्मान नहीं दे सकते तो कभी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए जिसने अपनी जवानी, अपनी इच्छाओं, अपने सुखों का परिवार के लिए त्याग किया हो, यदि हम किसी का भला नहीं कर सकते तो बुरा नहीं करना चाहिए, सम्मान नहीं दे सकते तो तिरस्कार भी नहीं करना चाहिए, बुरा सोचना भी एक अपराध ही है क्यों कि बुरी सोच से बुराइयाँ ही उपजेंगी न कि अच्छाई।

     यह लेख निज विचार है, इसका सम्बन्ध किसी व्यक्ति विशेष से नहीं है। इस लेख के प्रत्येक वाक्य का अपवाद सम्भव है।

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