अभिजीत मिश्र

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Sunday, September 13, 2020

भाई, सम्पत्ति और विपत्ति


एक समय था जब एक भाई दुसरे भाई की खुशी के लिए अपना हक छोड़ दिया करता करता था, भाई की खुशी के लिए भाई भाई से हार जाया करता था और आज का एक दौर है अपना हक कौन छोड़ एक दूसरे का हक मारने की होड लगी हुयी है । क्रुरता उतना बढ गया है कि इस हक मारने के होड़ में भाई भाई का दुश्मन बना बैठा है, भाई भाई की हत्या कर दे रहा है।

                  यह सही है कि वर्तमान समय भौतिकवादी और अर्थप्रधान है। सबके अपने सपने हैं, सब एकल परिवार की चाह में अग्रसर हैं, हर व्यक्ति धनोपार्जन में लग जा रहा है। हम भले ही स्वयं के परिवार के लिए धनोपार्जन करें लेकिन इसके बावजुद अभी सम्भव है हम एक दुसरे को विश्वास में लेकर अपनी चल अचल सम्पत्ति को बढायें, सुख दुःख में एक साथ रहें आपस में बाँटें, हर प्रतिकूल परिस्थिति/बुरे वक्त में एक भाई दुसरे के साथ खड़ा रहें, एक दुसरे के काम आवें ।

                   इतिहास गवाह है जिस परिवार में भाई भाई मिल कर प्रेम से रहे, बड़े भाई का छोटे नें सम्मान किया, बड़ों की आज्ञा का पालन हुवा वहाँ माता लक्ष्मी जी का वास हुआ और इसके विपरित जिस परिवार में भाई ने भाई का हक मारा , छोटे भाई ने बड़े भाई का अपमान किया, बडों की आज्ञा की अवहेलना हुयी वह परिवार विनाश को प्राप्त हो गया ।इसके ज्वलन्त उदाहरण हमारे हिन्दू धर्म के दो धार्मिक ग्रन्थ रामायण और महाभारत हैं।

                 आज के समय में खुशी प्राप्त करने के उद्देश्य से भाई भाई का हक मार रहा है,कष्ट दे रहा है, बड़ों का अपमान कर रहा है, हत्या तक कर दे रहा है, लेकिन वास्तविक खुशी, वास्तविक सुख मिल कर रहने, एक दुसरे का दुःख बाँटनें में है।

              ईश्वर नें भाई बनाया है विपत्ति बांटने के लिए न कि सम्पत्ति बाँटने के लिए या हक छिनने के लिए।

 

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