हमारे भारतीय युवा भारतीय संस्कृति, सभ्यता, परम्परा छोड कर पाश्चात्य सभ्यता की तरफ भागे जा रहे हैं,
वर्तमान परिवेश में नारी सशक्तिकरण की बात की जा रही है जब कि हमारी सनातन परम्परा में नवरात्रि एक ऐसा पर्व जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को दर्शाता है।
नारी असीम ऊर्जा का श्रोत है, जिसके बिना श्रृष्टि की संरचना, पोषण, रक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती. नवरात्र में हम इसी नारी शक्ति को पूजते हैं. भारतीय दर्शन ने मां दुर्गा के माध्यम से नारी-शक्ति को महत्व दिया है। वैसे तो मातृ शक्ति का आर्शीवाद हमें हमेशा प्राप्त होता है लेकिन
पावन पर्व नवरात्र में माता दुर्गा की कृपा, सृष्टि की सभी रचनाओं पर असिम रुप से बरसती है।
नवरात्र पूजा पर्व वर्ष में दो बार आता है, एक चैत्र माह में, दूसरा आश्विन माह में।
आश्विन माह की नवरात्र में रामलीला आदि सामूहिक धार्मिक अनुष्ठान होते हैं जिससे प्रत्येक सनातनी प्रत्येक इंसान एक नए उत्साह और उमंग से भरा होता है।
दुर्गा को शक्ति की देवी कहा गया है। उनकी पूजा-अर्चना का अपना महत्व है। भक्त 9 दिनों तक मां की शरण में रहते हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत धारण करते हैं और दशहरा के त्योहार के साथ ही व्रत समाप्त हो जाता है।
नवरात्रके नौ दिनों में स्वयं के बुरे विचार, क्रोध, ईष्या, लोभ जैसे बुरे गुणों पर नियंत्रण किया जाता है।
मलमास/अधिमास समाप्ति के साथ शारदीय नवरात्रि का पर्व कर्म काण्डी विद्वानों के अनुसार १७/१०/२० से प्रारम्भ हो कर एक दिन की हानि के साथ दशहरा/विजयादशमी २५ अक्टूबर को विजया दशमी/दशहरा के साथ समाप्त हो रहा है, नव रात्रि शनिवार से प्रारम्भ होने के कारण माँ अश्व पर सवार हो कर धरती पर आ रही हैं।
नवरात्रि पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है भक्तगण प्रतिपदा के दिन घटस्थापना के साथ नौ दिनों तक मां दुर्गा जी की पूजा आराधना करते हैं।
इन नौ दिनों में माता के नौ रुपों की उपासना की जाती है --
प्रथम माँ शैलपुत्री -- मां शैलपुत्री की हिमालय राज की पुत्री हैं माता नंदी की सवारी करती हैं इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का फूल है।
द्वितीय माँ ब्रह्मचारिणी-- माता ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा का दूसरा रूप हैं।माँ श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं और उनके एक हाथ में कमण्डल और दूसरे हाथ में जपमाला है माता का स्वरूप अत्यंत तेज और ज्योतिर्मय है ।
तृतीय मां चंद्रघंटा -- नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघण्टा की पूजा की जाती है और माता के सर पर आधा चन्द्रमा सुशोभित है।
चतुर्थ मां कुष्मांडा -- चौथे दिन माता कुष्माडा की आराधना होती है, माता कुष्माण्डा शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं।
पंचम मां स्कंदमाता -- स्कन्द माता की चार भुजाएं हैं माता अपने पुत्र को लेकर शेर की सवारी करती हैं।
षष्ठम् मां कात्यायनी -- मां कात्यायिनी दुर्गा जी का उग्र रूप है और नवरात्रि के छठे दिन मां के इस रूप को पूजा होती है मां कात्यायिनी साहस का प्रतीक हैं वे शेर पर सवार होती हैं और उनकी चार भुजाएं हैं।
सप्तम् मां कालरात्रि -- नवरात्र के सातवें दिन मां के उग्र रूप मां कालरात्रि की आराधना होती है।
अष्टम मां महागौरी -- नवरात्रि के आठवें दिन माता महागौरी की पुजा होती है माता का यह रूप शांति और ज्ञान की देवी का प्रतीक है।
नवम् मां सिद्धिदात्री -- नवरात्रि के अन्तिम दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना होती है ऐसा कहा जाता है। मां सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और उनकी चार भुजाएं हैं।
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