तनहाइ/अकेलापन इन्सान तो क्या किसी भी जीव को भी अपने जीवन में पसन्द नहीं होगा ऐसा मेरा मानना है क्योंकि यह जीवन की शायद सबसे बड़ी सजा है । लेकिन आज के भौतिकवादी और अर्थ प्रधान युग में हम लोग भौतिक संसाधनों को प्राप्त करने के लिए पैसे के पीछे भागे जा रहे हैं, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि किसी भी व्यक्ति के पास किसी रिश्ते के लिए समय बचा ही नहीं है और इसमें प्रमुख भुमिका निर्वहन कर रहा है एकल परिवार का बढता प्रचलन। आज माता पिता के पास अपने बच्चों के लिए समय नहीं रह रहा है वे बाल गृह में या हास्टल में रखे जाने लगे हैं।
पुराने घरों में कमरों में प्रकाश की व्यवस्था में चिराग रखने लिए जो स्थान बनाये जाते थे वह भी पास पास दो होते थे, घर के बड़े बुजुर्ग बताते थे कि एक ताखा(दीपक रखने का स्थान) रहेगा तो वह हमेशा उदास रहेगा, सुनने में तो यह भी आता है कि अकेला लगाया गया पौधा भी फूल या फल नहीं देता है।
कहने का सीधा सा अभिप्राय है कि हर जीव को साथ की आवश्यकता होती है ।
अब समय आ गया है कि हम इस भागम भाग भरी जिन्दगी में अपनों को समय और साथ दें, अपने आस पास नजर दौडायें कोई अकेला/उदास नजर आवे तो हम अपना साथ दें, उसे उदासी और बेवक्त मुरझाने से बचायें।
यदि हम स्वयं को अकेला महसूस कर रहे हैं तो किसी योग्य व्यक्ति का सानिध्य तलासें और खुद को भी बेवक्त निस्तेज होंने /मुरझाने से बचें।
दुसरों को मुरझाने से बचाने और स्वयं बचने के लिए मात्र एक ही विकल्प है कि हम रिश्तों और उसके महत्ता को समझें, रिश्तों को सजाने, सवारने और समेटने का प्रयास करें, रिश्तों को प्रेम रुपी जल से अभिसिंचत करें यदि हमारे रिश्तों के बीच किसी गलतफहमी से दरारें बन गयीं हैं तो यथासम्भव सौहार्दपूर्ण वातावरण में वार्ताळाप करके उन दरारों को भरें और खुद के साथ दुसरों को भी प्रेम पुर्वक हरा भरा मुस्कराता हुआ रखने का प्रयास करें।
क्योंकि इसी प्रकार यदि इन्सानों में अकेलापन, उदासी और रिश्तों के बीच कटुता बढती रही तो वह दिन दुर नहीं जब हमारे परिवार , समाज में ८० से ९० प्रतिशत व्यक्ति नशे के शिकार या अवसादग्रस्त और मानसिक रोगी होंगें और हमारा समाज एक भयावह स्थिति में पहुँच जायेगा।
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