हिन्दु आस्था एवं अन्धकार पर प्रकाश के विजय का प्रतिक प्रकाश पर्व दीपावली कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष अमावश्या तिथि को मनाया जाता है । इस दिन हम भगवान गणेश, माता लक्ष्मी और माता सरस्वती की पुजा अर्चना करते हैं। इस पर्व की तैयारी हम घर, दुकान, प्रतिष्ठान आदि की सफाई, रंगरोगन तथा नये वस्तु की खरीद के साथ पहले से ही करने लगते हैं ।
हम सब अपनी क्षमतानुसार थोड़ा कम या अधिक परम्पराओं का निर्वहन करते आ रहे हैं लेकिन समय के साथ इन परम्पराओं पर आधुनिकता का आवरण चढ गया है और हम आधुनिकता का चश्मा पहने परम्पराओं के पीछे छुपे भाव को भुल कर केवल मिथ्या प्रदर्शन में ही उलझे हुए हैं।
पहले मिट्टी के दीपक जलाये जाते थे जिसका स्थान बिजली के झालरों ने ले लिया, घर पर मिष्ठान-पकवान बना कर प्रसाद रुप में हम एक दुसरे को प्रेम भाव से देते थे जिसका स्थान आज पैकेट बन्द मिष्ठान और चाकलेट आदि ने ले लिया है।
दीपावली पर्व पर किये जाने वाले कार्य/परम्परा पर ध्यान आकृष्ट करते हुए उसके भाव को समझने का प्रयास करते हुए हम इस बात को समझने का प्रयास करें की दीपावली का पर्व हमें क्या सीख देता है ---
दीपावली और उपहार --- दीपावली पर उपहार देने की परम्परा रही है। वर्तमान समय में हम पहले से ही सोचने लगते हैं कि किसे क्या देना है लेकिन कभी कभी यह बोझ और तनाव का रुप ले लेता है ।
हमें इसके वास्तविक कारण और रुप को समझना होगा, सही मायने में उपहार आर्शीवाद और शुभकामनाएँ हैं समय के साथ यह परिवर्तित हुआ और हम मिठाई और वस्तुएँ उपहार में देने लगे। हम पहले शुद्ध भाव से प्रसाद रुप में घर मिठाई बनाते थे फिर बाजार से खरीदना शुरु किये, अब मिठाई के साथ वस्तु उपहार में देने लगे और धीरे धीरे हम उपहार की कीमत और आकार पर आ गये । कौन क्या दिया, किससे कितना फायदा हुआ आदि आदि । इसे हमने अब स्वार्थ परक और व्यापार बना दिया है।
इस दिखावे से हमें निकलना होगा अब हम सबको मिल कर यह विचार साझा करने की आवश्यकता है कि आर्शीवाद, प्रार्थना, सकारात्मकता, शुभता का मानसिक उपहार दें।
मीठाई --- दीपावली पर्व पर हम मिठाई बना कर शुभ भाव से प्यार के साथ एक दुसरे को मीठा खिला कर मुँह मीठा कराते हैं जिसका आशय है कि मुँह से निकलने वाले हमारे हर बोल मीठ, हृदय स्पर्शी, सुखद, सरस हों । पहले घर में मिठाई बनाते थे जो प्रसाद रुप में होता था जिसमें स्नेह, प्रार्थना, शान्ति का भाव होता था, अब बाजार से खरीदते हैं जो आर्थिक लेन देन का रुप है जिसे बनाने वाले कारीगर परिवार से पर्व पर दुर रह कर दुःखी, परेशान, और थके हारे भाव से बनाते हैं ।
हम भुल गये हैं कि मीठास बनाने की विधि में है न की मिठाई में है।
दीपक/दीया --- पहले मिट्टी का दीपक/ दीया हम जलाते थे एक दिया दुसरे को जला कर एक दीप माला बनाते हैं, दीये को बुझने नहीं देते थे बुझने का आशय अशुभता से था। दिया से आशय देने से है प्यार दिया,सम्मान दिया,खुशी दिया लेकिन अब केवल और केवल लेना चाहते हैं जो अशुभता का प्रतिक है
मिट्टी का दिया मिट्टी से बने शरीर का प्रतीक है, बाती का आशय आत्मा और घी ज्ञान का प्रतीक है । जब हम ऐसा आत्मिक दिया जलायेंगें तो हमारा जीवन रुपी दीया उथल पुथल के बीच भी निर्वाध रुप से जलता रहेगा। यदि हमारे जीवन में ऎसा दीया जलता रहे और हम एक दुसरे के जीवन रुपी दीये को जलाते रहे तो हमारा परिवार और समाज निःसन्देह एक दीपमाला बन जायेगा ।
दीपावली की सीख --- हम अपने जीवन को दीपावली बनाने का प्रयास करें। हम समझें कि मिट्टी के दिये के समान हम भी नासवान हैं। जिस प्रकार दीया जलाने से अन्धकार मिटता है उसी प्रकार हम अपने अन्दर दीपक जलायें और काम , क्रोध,अहंकार,द्वेष आदि अंधियारे को मिटायें। नयी वस्तुओं को खरीदने के साथ हम नये सोच,संस्कार, व्यवहार अपनायें । हम अपनों को सबसे बड़ा उपहार दें यथास्थिति उनको अपने जीवन में स्थान दें। मीठाई की तरह रिश्तों में मिठास भरें। पुराने हिसाब किताब समाप्त करने की तरह हम पुराने कटुता, वैमनस्यता आदि समाप्त कर दें। अपना दिया जला कर दुसरों का दिया जलायें जिससे हमारे साथ दुसरों का घर भी रोशन हो।
इस लेख का उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं है। इस लेख के प्रत्येक वाक्य का अपवाद और मत भिन्नता सम्भव है ।
समस्त सनातन धर्म प्रेमी बन्धुओं प्रकाश पर्व दीपावली की शुभकामनाएँ । दीपावली का दीप समस्त सनातनी वन्धुओं का जीवन दिव्य बनावे ।
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