मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहते हुए बहुत कुछ देखता सिखता है । यदि हम यह लेख पढ रहे हैं तो निःसन्देह शिक्षा ग्रहण कर रहे होगें या ग्रहण करके अपने व परिवार के जीविकोपार्जन में लगे होंगे । छात्र जीवन से लेकर पारिवारिक जीवन तक को ध्यान में रखते हुए यह लेख एक प्रयास है विभिन्न व्यक्तियों के जीवन व उनसे जुड़ी धारणा को समझने की जिससे हम किसी से अपनी तुलना करके अवसादग्रस्त या अति उत्साह/ अति आत्मविश्वास का शिकार न हों।
हमने अपने जीवन में अवश्य ही यह देखे होंगे की हमाऋ कुछ सहपाठी परीक्षा में फेल होने के बावजूद हँसते मुस्कुराते रहते हैं और कुछ एक नंबर कम आने पर डिग्री या किसी विषय में विशेष योग्यता न प्राप्त कर पाने पर भी रो देते हैं।
कुछ लोग बहुत कम उम्र में पढाई छोड़ कर रोजगार खोजने लगते हैं लेकिन उन्हें लम्बे समय तक सफलता नहीं प्राप्त होती है, तो वहीं हम देखते हैं कि कोई बहुत कम उम्र में किसी कम्पनी या सरकारी नौकरी में उच्च पद पर आसीन हो जाता है और सुनने/देखने में आता है कि जीवन के ४०-५० बसन्त देखने के बाद वे नहीं रहे और इसके विपरीत कुछ ऐसे लोग भी हमारे आस पास समाज में मिल जाते हैं जो बहुत देर से उच्च पद प्राप्त करते हैं और आनन्द पूर्ण दीर्घ जीवन जीते हैं।
कुछ बिना किसी विशेष प्रयास के बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं और कुछ को आजीवन एड़ियां घिसने पर भी कुछ विशेष प्राप्त नहीं हो पाता ।
हमारे इसी समाज में बहुतेरे अच्छे रोजगार और अच्छी आय के रहते हुए भी गृहस्थ जीवन से दुर हैं फिर भी खुश नहीं हैं और इसी समाज में कुछ लोग बिना किसी रोजगार और अनिश्चित आय के साथ गृहस्थ जीवन में रहते हुए खुश हैं
हमने यह भी देखा सुना होगा कि जिस उम्र में अधिकांश लोग सेवानिवृत्त होते हैं उस उम्र में कुछ लोग उच्च पद पर आसीन होते हैं इसका जीवन्त उदाहरण माननीय ओबामा जी और ट्रम्प जी हैं, ओबामा जी ५५ की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं ट्रम्प जी लगभग ७० की उम्र में नयी पारी की शुरुआत करते हैं।
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि हम सबको ऐसा महसूस होता है कि हमारे साथ के बहुत से लोग हमसे बहुत आगे निकल गये तो हम यह भी महसूस करते होंगें की बहुत से लोग हमसे अभी पीछे हैं।
इन सबके बावजूद अपनी तुलना किसी से न करते हुए हमारे लिए यह स्वीकार करना ही बेहतर होगा कि प्रत्येक व्यक्ति समयानुसार अपने स्थान पर सही है।
इस विश्वास के साथ हमें कर्म पथ पर निष्ठा पुर्वक अग्रसर और प्रयासरत रहना चाहिए कि परमात्मा ने हम सबको अपने अनुसार बनाया है और उन्हें पता है कि किसको कितना और कब देना है, ईश्वर द्वारा हमारे लिए लिया गया निर्णय सर्वश्रेष्ठ है जो हमारे सोच से परे है।
इसलिए हमें अपना कर्म करते हुए समय और मर्यादा की सीमा रहते हुए सन्तोष पुर्वक प्रतिक्षारत रहना ही श्रेष्ठ है।
इस लेख का अपवाद या इस सोच से मत भिन्नता सम्भव है।
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