अभिजीत मिश्र

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Tuesday, December 1, 2020

लुप्त होती भारतीय संस्कृति और परम्परा का जिम्मेदार कौन ??


 हम सब यह अवश्य देख रहे हैं और महसूस भी कर रहे हैं कि हमारी भारतीय संस्कृति, सभ्यता, परम्परा विलुप्त होती जा रही है और इसका स्थान पाश्चात्य सभ्यता लेती जा रही जिसके लिए हम युवा पीढ़ी को दोष दे कर अपनी जिम्मेदारी समाप्त कर लेते हैं, लेकिन क्या कभी हमने ईमानदारी से यह सोचा है कि इसका वास्तविक जिम्मेदार कौन है/गलती किसकी है, पाश्चात्य सभ्यता बच्चों को सीखा कौन रहा है ??

यदि हम ईमानदारी से चिंतन करें तो दोष युवा पीढ़ी का नहीं हमारा ही है। यह अजीब लग रहा होगा लेकिन इस सच्चाई को कुछ प्रमुख बिन्दुओं पर ध्यान देते हुए स्वीकार करना ही होगा-----

# बच्चे को माता पिता के स्थान पे मम्मा और डैड कहना कौन सीखाता है??

# बच्चे के प्रथम जन्मोत्सव पर भारतीय संस्कृति के अनुसार पुजा,अर्चना, बड़ों का आर्शीवाद लेने के स्थान पर केक काटना और दीपक बुझाने जैसा अशुभ गुण कौन सीखाता है???

# बच्चे के घर से बाहर निकलने पर बड़ों का चरण स्पर्श करने के स्थान पर टाटा/बाय-बाय करना कौन सीखाता है???

#  परीक्षा के लिए या यात्रा पर घर से निकलते समय अपने घर के मन्दिर में देवी-देवता व बड़ों का चरण स्पर्श करने के बाद आर्शीवाद देने के स्थान पर बेस्ट आफ लक या हैप्पी जर्नी कौन सीखाता है ??

# बालक के किसी सफलता प्राप्ति के बाद घर में परिवार के सदस्यों के साथ खुशी मनाने के स्थान पर बच्चों को होटल या अन्यत्र पार्टी मनाने की अनुमति और खर्च कौन देता है ??

             इस तरह की न जाने कितनी ही पाश्चात्य कुसंस्कृतियों को हमने स्वीकार कर लिया है और बढावा देते चले जा रहे हैं जिसकी वजह से आज की युवा पीढ़ी माता पिता को समय देना तो दुर पैर छुना भी अपमान समझती है।

            हमें समझना होगा अंग्रेज़ी मात्र एक भाषा है इसे सीखना है न कि इसकी आड़ में पाश्चात्य सभ्यता जीवन में उतारना है

        बालक अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यालय में पढें, खुब फर्राटेदार अंग्रेजी बोलें लेकिन जीवन के शुभ समय में अपनी भारतीय संस्कृति और परम्परा की शुभता को छोड़ पाश्चात्य संस्कृति की अशुभता को ग्रहण न करें ।

    मात्र फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने और पाश्चात्य सभ्यता के राह पर चलने को ही अपनी शान समझने की भुल यदि हम करते रहे तो वह दिन दुर नहीं है जब हमारे समाज का कोई बालक बड़ा होकर भारतीय परम्परा और संस्कृति तो दुर हमारी भावना ही नहीं समझेगा ।

     हमेंअपने बच्चों को अंग्रेजी शिक्षा तो देनी है लेकिन अपनी संस्कृति, संस्कार, सभ्यता, परम्परा बली दे कर नहीं ।

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