हमारे समाज के रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले अति धनाढ्य/सम्पन्न परिवार जो में फिल्मी/ पाश्चात्य सभ्यता का एक नये रुप में आगमन हो गया है और यह आगमन दो तीन वर्षों में हुआ है, जिसमें वर वधु का विवाह पुर्व ही पहाड़ी/समुद्री आदि स्थानों पर तथाकथित आधुनिक कपड़ों (मेरे विचार से अंग प्रदर्शन करते हुए) विडियो और फोटो तैयार किया जा रहा है । इसके लिए बाकायदे उनके साथ फोटो और विडियो तैयार करने वालों की टीम रहती है और यह परम्परा धीरे धीरे बढ़ती जा रही है जिसे इन लोगों ने नाम दे रखा है 'प्री वेडिंग शुट' ।
इसमे वर वधू परिवार की अनुमति से फोटोग्राफर की टीम लेकर
सैर सपाटे के स्थल, बड़े बड़े होटल, समुद्री तट पर जाते हैं जहाँ अब तक आधुनिक लोग हानिमुन के लिए जाते रहे हैं और वहाँ फिल्मी/पाश्चात्य परिधान व अंदाज में फोटो और विडियो तैयार करवाते हैं।
इस फोटो और विडियो को विवाह स्थल पर बड़े बड़े पर्दों पर दिखाया जाता है जहाँ दोनों परिवार के रिश्तेदार, मित्र, सामाजिक व्यक्ति आदि उपस्थित रहते हैं जो विवाह में दामपत्य सुत्र बन्धन का साक्षी बनने व आर्शीवाद देने आते हैं लेकिन विवाह पुर्व ही वर कन्या को कम वस्त्रों में एक दुसरे के बाहों में उस स्थिति में झुलते हुए देखते हैं जो अब तक सामाजिक दृष्टिकोण से यह सब अमर्यादित कहा जाता रहा है।
यह प्रचलन हमारे भारतीय संस्कृति और समाज को शर्मसार करने वाला है, इसके साथ ही यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि यह दोनों परिवारों की रजामन्दी से होता है।
अत्यंत कष्ट की बात है कि कुछ परिवारों के कारण ही विवाह जैसे पवित्र कार्य पर एक अत्यंत भद्दा दाग लग रहा है।
इस तथाकथित आधुनिकता की सच्चाई को देख कर मन में कष्ट के साथ एक ही विचार मन में उत्पन्न होता है कि जब इतना कुछ हो चुका है तो हमें क्यों बुलाया जाता है, इस फुहडता का साक्षी बनने के लिए या दाम्पत्य सुत्र बन्धन का ??
विवाह में इस नयी और भारतीय संस्कृति के हिसाब से गलत परम्परा की शुरुआत भले ही हमारे समाज के अति धनाढ्य परिवारों से हुआ है लेकिन इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि ये धनाढ्य परिवार हमारी भारतीय सभ्यता और समाज के छोटे तबके के लिए संकट उत्पन्न कर रहे हैं।
इस लेख के माध्यम से समाज के सभी सम्मानित, सक्षम व्यक्तियों से निवेदन है कि अपने समाज में ऐसी दुषित परम्परा को बढावा देने वाले परिवारों से इसे बन्द करने का अनुरोध करें या ऐसे परिवार और कार्यक्रम का पूर्णतया बहिष्कार को बढावा दें, तभी ऐसी दुषित परम्परा को रोका जा सकता है ।
भारतीय सभ्यता की दृष्टि से इस तरह के दुषित परम्परा को यदि रोका नहीं गया तो हमारे समाज को ऐसा भयानक परिणाम भोगने को तैयार रहना होगा जिससे हमारी आने वाली कई पीढी उबर नहीं पायेगी।
यह लेख किसी साधन/धन सम्पन्न व्यक्ति/परिवार की भावना आहत करना न होकर भारतीय सांस्कृतिक दृष्टि से समाज में फैलने वाली गलत परम्परा के प्रति लोगों को जागृत करने का एक छोटा सा प्रयास है।
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समाज के लिए सच्चा आईना जरूर अमल करना चाहिए
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