वर्तमान युग को यदि मशीनी युग कहा जाय तो मेरे विचार से शायद गलत न होगा और इस मशीनी युग में मनुष्य भी अपनी असीमित इच्छाओं/भौतिक संसाधनों की प्राप्ति जो अधिकतर दिखावे और अपने पड़ोसियों से बड़ा दिखने के लिए ही रहता है, आदि की पूर्ति के लिए दिन रात पैसे के पीछे मशीनों की तरह भागते जा रहा है। कई परिवारों की स्थिति तो ऐसी है कि परिवार एकल है और पति पत्नी दोनों धनार्जन के लिए सुबह से देर रात तक घर से बाहर रहते हैं। अपने अपने कार्यक्षेत्र में निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के लिए जूझते रहते हैं और इसमें अपने उच्चाधिकारी की आलोचना भी सहन करते रहते हैं और दोनों जब थके हारे घर वापस आते हैं तो प्रारम्भ होता है एक दुसरे से ज्यादा थके होने और घर का कार्य करने नोक झोंक का सिलसिला इसके साथ ही शुरु होता है उच्चाधिकारी से सुने आलोचना की भडास बच्चों पर निकालते हुए उन्हें नकारा सिद्ध करने और डांटने की प्रक्रिया जिसका परिणाम होता है समय के साथ चिड़चिड़ापन और जीवन से निराशा का बढना और उसके साथ धीरे धीरे अवसाद के तरफ बढने का सिलसिला, इन सबका दुष्परिणाम सामने आता है बच्चों के विद्रोही और पति पत्नी के खूंखार होने के रुप में । बड़े शहरों में वर्तमान समय में यह लगभग प्रत्येक परिवार की कहानी है।
धनार्जन बुरा नहीं कहा जा सकता और उपर्युक्त जो भी दुष्परिणाम मैंने बताया वह सब सही कहे जा सकते हैं लेकिन इन सबके पीछे जो मूल छिपा है मेरे विचार से वह है हमारी सहनशीलता की कमी ।
गृहस्थ जीवन एक तपस्थली है और इस तपस्थली पर हम अपना संयम व सहनशक्ति छोड़ कर कभी भी अपनी तपस्या पुर्ण नहीं कर सकते अर्थात परिवार के सदस्यों के साथ सुखी जीवन व्यतीत नहीं कर सकते।
इन सब दुष्परिणामों से बचने के लिए हमें इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हम अपने अपने कार्य क्षेत्र की समस्याएं और उससे जुड़ी चिंताएं बाहर छोड़ कर घर में ईश्वर से यह प्रार्थना करते हुए प्रवेश किया जाय कि ईश्वर मेरी इन समस्याओं को दुर करें और इनसे अपने परिवार को दुर रखते हुए परिवार का वातावरण शान्त और मधुर बनाये रखा जाय । व्यवहारिक जीवन में यह कठिन अवश्य हो सकता है लेकिन असम्भव बिल्कुल नहीं है और यदि हम ऐसा करने में सफल हो जाते हैं तो निःसंदेह हमारा अगला दिन बीते हुए दिन से सरल और हल्का रहेगा ।
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