अभिजीत मिश्र

Welcome to Suvichar Sangrah सफलता हमारा परिचय दुनिया को करवाती है और असफलता हमें दुनिया का परिचय करवाती है :- प्रदीप कुमार पाण्डेय. This is the Only Official Website of सुविचार संग्रह     “Always Type www.suvicharsangrah.com . For advertising in this website contact us suvicharsangrah80@gmail.com.”

Tuesday, January 19, 2021

बढ़ती बेरोजगारी जिम्मेदार कौन ??

 



भारत वर्ष में बेरोजगारों की संख्या सुरसा के मुँह के तरह बढती जा रही है और इसमॆं देखा जाय तो शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बहुत ज्यादा है इसलिए यदि इसे शिक्षित बेरोजगारों की संख्या कहें तो शायद गलत न हो। वह समय अब बहुत दुर नहीं जब हमारे देश में यह बेरोजगारी एक भयावह रुप ले लेगी । 

           बेरोजगारी के लिए दशकों से सरकार को जिम्मेदार बताते हुए कोसा जाता रहा है चाहे सरकार किसी भी दल की हो ।

निश्चित ही यह एक विकट समस्या है लेकिन क्या कभी हमने गम्भीरता से इस विषय पर चिंतन किया है कि वास्तविक जिम्मेदारी है किसकी ??

               प्रथम दृश्यट्या हम मान लेते हैं कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह देश के युवाओं को रोजगार उपलब्ध करावे लेकिन क्या सतप्रतिशत रोजगार सरकार दे सकती है और क्या केवल दोषारोपण से हमारी/युवाओं की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है ??

      कम से कम मेरे विचार से तो नहीं, मेरे विचार से इस बढती बेरोजगारी के लिए जितना जिम्मेदार हमारी सरकारें हैं उतने ही जिम्मेदार हमारे देश के युवा और उनके अभिभावक भी हैं। मेरा यह कहना शायद हमारे बेरोजगार साथियों और उनके अभिभावकों की भावना को आहत कर दे जिसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हुँ लेकिन ऐसा कहने के पीछे दो मुख्य कारण हैं जिसमें पहला यह है कि हमारे देश में आम धारणा बनी हुयी है कि सरकारी नौकरी ही रोजगार है तथा दुसरा कि हमारे देश के अधिकांश युवाओं की शिक्षा लक्ष्य विहीन है। इतना ही नहीं बहुतायत छात्र ही नहीं उनके अभिभावक भी इस प्रयास में रहते हैं कि किस विद्यालय से बिना परिश्रम सहजता से अधिक नम्बर प्राप्त किया जा सकता है, यदि इसे सरल शब्दों में कहें तो अधिकांश युवक शिक्षित होने के स्थान पर डिग्रीधारी होने में लगे रहते हैं।

             उपरोक्त लाइनों का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि सभी बेरोजगार डिग्रीधारी हैं योग्य नहीं हैं, उनमे हमारे होनहार युवा भी हैं। इन होनहारों में कुछ चंचल हैं क्यों कि मानव मन जितना शक्तिशाली है उतना ही चन्चल भी है जिसकी चंचलता के कारण हमारी समस्त शक्ति बिखरी रहती है जिसके कारण हम सहजता से सफलता प्राप्त नहीं कर पाते हैं।

             मानव में असीम शक्तियाँ वास करती हैं, जब हम एकाग्र चित्त होते हैं तो जिस भी शक्ति के लिए हमारे अन्दर एकाग्रता आती है वह शक्ति हमारे अन्दर सुषुप्ता अवस्था से जागृत अवस्था में परिवर्तित हो जाती है और हम उस शक्ति से ओतप्रोत हो जाते हैं लेकिन जब हम अपने अन्दर एकाग्रता नहीं ला पाते तो ऐसी दशा में हम कोई एक निर्णय ले ही नहीं पाते हैं और हमेशा इधर उधर डोलते रहते हैं, ऐसी दशा में सफलता देवी का दर्शन हमें नहीं हो पाता है। 

               जीवन में हमें सफलता देवी के दर्शन उसी समय हो सकता है जब हम एकाग्रता पर ध्यान देकर एक लक्ष्य को देखें और हमें कुछ दुसरा दिखाई ही न दे ; चारो तरफ बस हमारा लक्ष्य हमारा उद्देश्य ही दिखाई दे।

         इसके बावजूद ऐसा होता है कि हमारे जीवन में, लक्ष्य प्राप्ति में कुछ समस्याएं आती हैं, जो हमें समस्याएं दिखाई देती हैं वह वास्तव में हमारे अन्दर की ही वृत्तियाँ हैं जो हमें सफलता के पथ पर अग्रसर होने से रोकती हैं । यदि हमें लक्ष्य प्राप्त करना है तो  स्वयं पर विश्वास रखते हुए दृढ़तापूर्वक उन विचारों को त्याग देना चाहिए जो हमें पथ से भटका रही हैं।

          संक्षिप्त में कहें तो केवल शिक्षा या नौकरी में ही नहीं बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मन की असीम शक्तियों को केवल और केवल अपने लक्ष्य पर केन्द्रित करके ही सफलता प्राप्त की जा सकती है और हमारा ध्यान भी इस प्रकार केन्द्रित हो जिससे हमें कुछ लक्ष्य के अलावा दिखाई ही न दे, जैसे अर्जुन नें किया जिससे उन्हें केवल मछली की आँख दिखाई दे रहा था।

          हृदय एक बार तब अवश्य दुःखी हो जाता है जब इन सभी तथ्यों के बाद भी हमारे समाज में प्रतिभाएं तुच्छ राजनीति के चक्कर में आरक्षण, जातिवाद, क्षेत्रवाद और भ्रष्टाचार की भेंट चढ जाते हैं ।

1 comment:

  1. बेरोजगारी की समस्या पर यह बहुत ही शानदार लेख है। मैं एक- एक बात से पूर्णतया सहमत हूँ। बढ़ती बेरोजगारी को पूर्णतया समाप्त तो नहीं किया जा सकता है लेकिन कम जरूर किया जा सकता है। बढ़ती बेरोजगारी में सरकार के साथ- साथ हम खुद जिम्मेदार हैं। हमारे देश में बढ़ती बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण जनसंख्या विस्फोट की समस्या है। सबसे पहले हमें जनसंख्या विस्फोट को कम करना होगा। हमारे देश में पढ़े- लिखे तो बहुत हैं लेकिन ईमानदारी से पढ़ने वाले 10 प्रतिशत ही हैं। सभी को सरकारी नौकरी तो देना सम्भव नहीं है लेकिन सरकार यदि व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देकर यदि नये- नये रोजगार के अवसर प्रदान करे तो बेरोजगारी अवश्य कम हो सकती है। इसके बारे में यदि लिखा जाये तो लेख बहुत लंबा हो जायेगा।

    ReplyDelete