हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है । यह माता सरस्वती का प्राकट्य दिवस माना जाता है इसलिए बसन्त पंचमी को विशेष रूप से विद्या, बुद्धि, ज्ञान, कला, शिल्प, संगीत की देवी माता सरस्वती की पूजा उपासना कर माता से अपने लिए विशेष प्रार्थना करते हैं । यह पर्व विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।
इस दिन सनातान भक्त गण अज्ञानता को दुर कर ज्ञान प्राप्ति हेतु देवी माता सरस्वती की अर्चना करते हैं।
माता सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी आदि अनेक नामों से जाना जाता है।
बसंत पंचमी के दिन को बसंत ऋतु के आगमन एवं ऋतु परिवर्तन का दिन माना जाता है इस दिन से प्राकृति अपने सौन्दर्य में अनुपम छटा बिखेरना प्रारम्भ करती है। प्रकृति के कण कण में नवीन रस का संचार कर, प्रकृति में हर तरफ हरियाली बिखेरने के साथ प्रकृति वसंत रंग में रंग चुकी होती है, मानो ऐसा प्रतीत होता है प्रकृति सज धज कर ऋतुराज का स्वागत करने को तैयार हुयी हो। इस काल में सम्पूर्ण प्रकृति में नूतन ऊर्जा का संचार होता है। सनातन पांचांग की गणना के अनुसार छः ऋतुओं (बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) में बसंत को ऋतुराज भी सम्बोधित किया जाता है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है और इस समय कृषक लोग भी अपने कृषि कार्य से लगभग निवृत्त रहते हैं।
मेरी जानकारी के अनुसार बसन्त पंचमी स्वयं में एक शुभ मुहूर्त है, इस दिन कोई भी शुभ, नवीन और मांगलिक कार्य किया जा सकता है । (विभिन्न विद्वानों के अनुसार मेरा यह कथन अस्वीकार भी किया जा सकता है।)
कुछ स्थानों पर शिशुओं को पहले अक्षर का बोध भी करवाया जाता है ।
हमारे सनातनी समाज का दुर्भाग्य है कि प्रत्येक पर्व की तरह इस पर्व पर भी अधिकांश युवा माता सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर उपासना के नाम पर मदिरापान करके भद्दे गानों को तेज आवाज में बजाते और नृत्य आदि करते हैं, विडम्बना तो देखिए विद्या, बुद्धि, ज्ञान की देवी की पुजा मदिरापान करके करते हैं जब कि सर्व विदित है कि जहाँ मदिरापान होता है वहाँ विद्या, बुद्धि का वास हो ही नहीं सकता ।
आप सभी विद्या/बुद्धि/ज्ञान/कला के उपासक, सनातन धर्म एवं परम्परा प्रेमी बन्धुओं को सरस्वती पूजन/बसन्त पंचमी/ऋतुराज बसन्त के आगमन की बहुत बहुत बधाई ।
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