मित्रों वर्तमान में समय में युवा पीढ़ी का रुझान पाश्चात्य भाषा विशेषतया अंग्रेज़ी की तरफ बढता जा है । अंग्रेज़ी एक स्टेटस सिम्बल बन गया है किसी भी भाषा का ज्ञान प्राप्त करना बुरा नहीं है लेकिन यह पाश्चात्य भाषा के साथ युवाओं में पाश्चात्य सभ्यता भी दिन दुना रात चौगुना की गति से बढ़ती जा रही और यह विलुप्त करती जा रही है हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता को। इसी बढते पाश्चात्य सभ्यता के कारण ही युवा साथी अंग्रेज़ी कैलेण्डर वर्ष के फरवरी माह का महत्ता बढा दिया है। सुविचार संग्रह (suvicharsangrah.com) पर मैं इसी फरवरी माह पर यह लेख है ।
किसी भी भाषा या सभ्यता का ज्ञान होना बुरी बात नहीं है अंग्रेज़ी तो विश्व पटल पर संवाद स्थापित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है लेकिन इसका अभिप्राय यह बिल्कुल नहीं है कि हम अपनी भारतीय संस्कृति और सभ्यता का त्याग कर दिया जाय । मैंने कई बार अपने पिछले लेखों में यह उल्लेख किया है कि जिस राष्ट्र की भाषा, संस्कृति और सभ्यता की उपेक्षा उस राष्ट्र के लोग ही करने लगें उस राष्ट्र का पतन स्वाभाविक है। वर्तमान समय में युवा, प्रौढ़ और बुजुर्ग सभी की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि हम अपने भारतीय संस्कृति, सभ्यता और परम्पराओं को सजा सवांर और सहेज कर आने वाली पीढी को हस्तान्तरित करें अन्यथा हमारी संस्कृति को विलुप्त होने में अब देर नहीं लगेगी क्रय आने वाली पीढ़ी और भी खर्चीली होगी।
अब हम आते हैं मुख्य विषय फरवरी माह पर- अब फरवरी माह प्रेम के माह के रुप में देखा जाने लगा है। समझ में नहीं आता यह प्रेम एक माह का है या यह माह प्रेम का है ??? जो भी हो हमारी पुरातन भारतीय संस्कृति में तो प्रत्येक रिश्ते में हर दिन, हर पल प्रेम,सौहार्द, समर्पण और सम्मान का होता है तो फिर हम दिन और माह में क्यों बंधते जा रहे हैं?? इस माह में अलग अलग तिथियों को रोज डे, प्रपोज डे, चाकलेट डे, ट्रेडी डे, प्रामिस डे, हग डे, किस डे और वेलेन्टाइन डे के रुप में हमारा युवा वर्ग मना रहा है । जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो जा रहा कि किस दिन क्या किया जायेगा हमारे युवा वर्ग के पति पत्नी और प्रेमी युगलों द्वारा । यदि हम गौर करें अपने पिछली पीढीयों पर तो देखने को मिलेगा कि पहले के अधिकांश विवाह अभिभावक के मर्जी से होता था और शारीरिक व सौन्दर्य की दृष्टि से बेमेल होते थे फिर भी वे जीवन की अन्तिम यात्रा तक टुटते नहीं थे इसका प्रमुख कारण एक दुसरे के प्रति आत्मीयता, समर्पण, त्याग, सम्मान, समर्पण के साथ आपसी ताल मेल होता था जब कि वर्तमान समय में फरवरी माह के इस दिखावे के साथ प्रेम विवाह बढें हैं और इनमें से अधिकांश असफल हो कर टुट रहे हैं जिसके मूल कारण है आज लोगों का अहंकारी होना जिसमें एक दुसरे की भावनाएं दिखाई नहीं देती और विवाह का आधार सौन्दर्य और देह प्रेम है।
हमारे कुछ युवा मित्र कहते मिल जाते हैं कि यह पहला प्यार है मेरा उनसे प्रश्न है साहब शरीरिक रचना,चाल-डाल, आदि देख कर इस आकर्षण को आप पहले प्यार का नाम दे रहे हैं तो वह क्या है जो हमारे माता पिता एक बच्चे के गर्भ में आने पर ही उसे बिना देखे उससे प्यार करने लगते हैं,उसकी सलामती खुशहाली के लिए प्रार्थना करने लगते हैं, माँ नौ महिने कष्ट झेल कर असीम प्रसव वेदना सहन कर हमें अस्तित्व में लाती है।
उपरोक्त सभी बातों के साथ मैं अपनी युवा पीढ़ी से कुछ प्रश्न पुछता हुँ जब हम स्वयं किसी की बहन बेटी को गुलाब,चाकलेट,ट्रेडी आदि उपहार स्वरूप दे रहे हैं उसका आलिंगन कर रहे हैं, चुम्बन ले रहे हैं तो हम किस नैतिक अधिकार से अपने घर में बहन बेटियों को अनुशासन और चरित्र का पाठ पढ़ाते हैं ।
हमारा समाज जिस तरह गर्त में जा रहा उसे बचाने के लिए क्या हम स्वयं से स्वयं यह वचन(प्रामिस) नहीं दे सकते कि हम खुद को चरित्रवान बनायेंगें जिससे हमारे समाज की मातृ शक्ति चरित्रहीन होनें से बच सकें , क्या हम खुद से खुद को यह वचन नहीं दे सकते कि हम प्रत्येक नारी का सम्मान करेंगें, क्या हम अपने माता पिता को समय समय पर उपहार नहीं दे सकते, क्या हम माता पिता का आलिंगन कर उनसे नहीं बोल सकते कि हम आपको बहुत प्यार करते हैं माता पिता जी इसके प्रति उत्तर में कुछ युवा कहेंगें हमारे अन्दर इतनी हिम्मत नहीं है उनसे मैं पुछना चाहता हुँ कि जब हमारे पास इतनी हिम्मत है कि दुसरे के बहन बेटी के साथ ऐसा कर सकते हैं तो अपने माता पिता का आलिंगन क्यों नहीं कर सकते ?? यदि मान भी लिया जाय कि माता पिता को आई लव यु नहीं बोल सकते उनका आलिंगन नहीं कर सकते तो उनका चरण वन्दन करके यह तो कह सकते हैं कि माता पिता जी मैं यह प्रण करता हुँ कि सदैव आपके आर्शीवाद की आकांक्षा रखते हुए आपकी छत्र छाया में आपके साथ रहेंगें, क्या हम अपने आस पास के जरूरतमन्द बच्चों को चॉकलेट, ट्रेडी/खिलौने, उपहार देकर उनके चेहरे पर कुछ पल के लिए मुस्कान ला सकें???
सब कुछ सम्भव मात्र आवश्यकता है दृढ़ इच्छा शक्ति की, आवश्यकता है बिना विचार किये पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण किये अपने पुरातन संस्कृति, सभ्यता, परम्परा की वैज्ञानिकता को समझ कर उसे अपनाने की, आवश्यकता है अपने समाज और मातृ शक्ति के सम्मान और रक्षार्थ दृढ़ संकल्पित होने की ।
यदि मैं संक्षेप में कहुँ तो आवश्यकता है हमारे युवा समाज को अपने दायित्व को समझने, अपने संस्कृति की वैज्ञानिकता को समझने और फिल्मी दुनिया के चकाचौंध भरे दिखावे से प्रभावित होकर पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण से बचने की साथ ही इसके लिए हमारे समाज के पौढ़ और वृद्ध/अनुभवी लोगों को जागरुक होकर युवाओं का मार्गदर्शन कराने का यथासम्भव प्रयास करने की।
यह लेख लेखक का व्यक्तिगत विचार हैं।
सुविचार संग्रह (suvicharsangrah.com) पर समय देने/लेख पढ़ने के लिए कोटि कोटि साधुवाद ।
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