कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक तस्वीर खुब दिखाई दे रही है जिसमें एक दुल्हन दुल्हे सहित दहेज से लदे गाड़ी को खिंच रही है, निःसन्देह यह तस्वीर भावुक कर देने वाली है और हमारे समाज में व्याप्त दहेज की भयावहता को प्रदर्शित कर रहा है। सुविचार संग्रह ( suvicharsangrah.com) पर यह लेख इसी पर आधारित है।
मित्रों भारत में दहेज प्रथा बहुत समय से चला आ रहा है लेकिन समय के साथ इसका रुप और भयावहता सुरसा के मुँह की तरह बढता जा रहा है। वास्तव में पुर्व काल में वधू (कन्या/लड़की) का पिता वर (लड़के/दुल्हे) को अपनी स्वेक्षा से उपहार स्वरूप अपनी खुशी से अपनी क्षमतानुसार धन या वस्तु देता था लेकिन समय के साथ वर पक्ष इसे अधिकार मानने लगा और वधू पक्ष अपनी मजबूरी, जितना अधिक दहेज में वस्तुएँ प्राप्त होती हैं उतना ही उसे प्रदर्शित कर वर पक्ष अपने को गौरवान्वित महसूस करने लगा है दुसरे शब्दों में कहूँ तो दहेज एक स्टेटस सिम्बल बन गया है।
लेकिन इस बढ़ती महंगाई में दहेज के बढ़ते इस चलन का वास्तविक दोषी कौन है?? यह हमें समझना होगा।
सामान्यतः हम सबके नजर में यही है कि दहेज प्रथा का वास्तविक दोषी वर पक्ष ही है लेकिन मेरे विचार से यह उचित नहीं है, मेरे विचार से वर पक्ष जितना दोषी/जिम्मेदार है उससे थोड़ा कम ही सही लेकिन दोषी वधू पक्ष भी है। मेरा यह विचार अधिकांश लोगों को गलत लग रहा होगा जो सामान्यतः लगना भी चाहिए लेकिन किसी निर्णय पर पहुँचने से पहले पुर्व व वर्तमान सामाजिक ढांचा सोच और प्रचलन को समझने की आवश्यकता है ।
पुर्व काल और आज के परिवेश में बहुत परिवर्तन हो गया है । पहले माता पिता अपनी बच्चियों को गृह कार्य में दक्ष करते थे, संयुक्त परिवार में रहने की और संस्कारिक जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते थे, विवाह खोजते समय परिवार का आधार,सामाजिक स्तर, पारिवारिक प्रतिष्ठा और पारिवारिक संस्कार देखते थे, वर का बात, व्यवहार और आचरण देखते थे; वर पक्ष के सामने अपनी कन्या का परिचय करवाते समय गर्व के साथ गृह कार्य में दक्षता और निपुणता का गुणगान करते थे लेकिन वर्तमान काल में हो क्या रहा है हमें यह भी देखना नितान्त आवश्यक है, मित्रों आज लगभग प्रत्येक कन्या का पिता ऐसा परिवार ढुढ रहा है जो एकल हो और वर सरकारी नौकरी वाला हो इतना ही नहीं कुछ तो इससे भी आगे बढ़ के खोज रहे हैं कि लड़का अपनी पत्नी को लेकर परिवार से दुर/अपने कार्य स्थल पर लेकर रहे, कन्या का परिचय कराते समय यह बताने में गर्व महसूस कर रहे हैं कि हमारी बच्ची से हम कोई कार्य नहीं करवाते हैं । गृह कार्य में दक्ष बनाना तो दुर संयुक्त परिवार में रहने की शिक्षा ही नहीं दिया जा रहा है।
इस दहेज प्रथा को धीरे धीरे समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक कन्या का पिता अपनी सोच बदले; कन्या को आत्म निर्भर बनाया जा, संयुक्त परिवार में रहनें के संस्कार के साथ गृह कार्य में प्रवीण किया जाय इसके अतिरिक्त प्रत्येक कन्या के पिता को सबसे बड़ा परिवर्तन अपनी सोच में यह लाना होगा कि जितना पैसा, सामग्री दहेज के रुप में देने और दिखावे के रुप में तमाम खर्च कर एकल परिवार का सरकारी नौकरी करने वाले वर खरीदने लिए तैयार होता है यदि वही धन या उससे कम धन से ही एक प्रतिष्ठित, सामाजिक, गृहस्थ/कृषक परिवार के सुयोग्य सुशील और सद्गुणी बेरोजगार वर ही सही खोज कर उसे उसी धन से अच्छा स्वरोजगार/व्यवसाय करा दिया जाय तो शायद एक बेरोजगार युवक को अच्छा रोजगार मिलने के साथ दोनों परिवार ही सुखी रह सकते हैं और दहेज के लोभियों/ अपने लड़के का कीमत लगाने वाले लोगों की कीमत भी स्वतः घटने लगेगी ।
इस दहेज रुपी दानव को मारने के आवश्यकता है मात्र प्रत्येक कन्या के पिता को अपनी सोच बदलने की। जिस दिन से कन्या के पिता अपनी सोच बदलने लगे उसी दिन से इन दहेज लोभियों के लड़कों की कीमत भी स्वतः गिर जायेगी।
इस लेख का उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं है। यह लेख लेखक का निज विचार है, अपवाद सम्भव है।
सुविचार संग्रह (suvicharsangrah.com) पर समय देने/पुरा लेख पढने के लिए आप सभी पाठकों का बहुत बहुत आभार ।
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