वर्तमान परिवेश में हमारे रिश्ते,परिवार और समाज की स्थिति बद से बद्तर होती जा रही है । हम, हमारे रिश्ते, हमारा परिवार, हमारा समाज टुटते और बिखरते जा रहे हैं जो बहुत ही चिंता का विषय है लेकिन शायद इस तरफ किसी का ध्यान इधर नहीं सब इस कृत्रिम रुप से चमचमाती दुनिया और भौतिक संसाधनों को एकत्रित करने की होड़ में भागे जा रहे हैं।
हमने कभी विचार किया कि इसके पीछे कारण क्या है शायद नहीं, इस लेख के माध्यम से सुविचार संग्रह (suvicharsanrah.com) से इसी विषय पर कुछ प्रकाश डालने का प्रयास कर रहा हुँ कितना सच और सार्थक है यह आप देवतुल्य पाठकगण ही बता सकते हैं। लेख थोड़ा लम्बा अवश्य है लेकिन देवतुल्यों से करवद्ध निवेदन है कि पुरा पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।
वर्तमान समय में उपजे इस परिस्थिति का जिम्मेदार कौन है??
सबसे अधिक तो आधुनिकता का काला ऐनक लगाये यह संस्कार विहीन वर्तमान शिक्षा व्यवस्था।
पहले रिश्ते स्थापित करने से पुर्व हमारे पुर्वज परिवार के संस्कार, सामाजिक स्तर और परिवार का वर्तमान और भूतकाल की स्थिति देखते थे लेकिन अब तो परिवार की पृष्ठ भूमि, परिवार और मन की सुन्दरता न देख कर तन की सुन्दरता, धन सम्पदा, सरकारी नौकरी, भौतिक संसाधन आदि देखा जा रहा है।
संक्षेप में कहुँ तो अब रिश्तों को व्यवसायिक रुप दे दिया गया है।
आज माता पिता धन अर्जन और अपनी दुनिया में मस्त हैं जिसकी वजह से बच्चे पुर्णतया स्वच्छंद होते जा रहे हैं और माता पिता धीरे धीरे अपनी इच्छानुसार बच्चों का रिश्ता करने की हिम्मत भी खोते जा रहे हैं।
आज वर पक्ष को अधिक दान दहेज प्राप्त करने के लिए बड़े घर की वधू चाहिए इतना ही नहीं लड़की वालों को भी छोटा और पैसे वाले परिवार के साथ सरकारी नौकरी करने वाला वर चाहिए और लड़का परिवार से दुर नौकरी करता हो तो सोने पे सुहागा जिससे लड़की को काम न करना पड़े । इसी सब के कारण परिवार इतना छोटा होता जा रहा है कि बाबा दादी, ननद देवर आदि तो दुर हैं माता पिता भी बोझ लगने लगे हैं । परिवार का आशय तो केवल और केवल पति पत्नी और बच्चे हो गया गया है लेकिन हम भूल रहे हैं कि हम भी कभी इन रिश्तों के रुप में स्थापित होंगे।
पहले रिश्ता करते समय माता पिता गर्व से यह बताते थे कि मेरी बेटी गृह कार्य में दक्ष है लेकिन अब तो गर्व के साथ यह बताया जाता है कि हमनें हमारी बेटी से कभी कोई काम नहीं करवाये हैं। वर्तमान समय में तो रिश्ता सोशल साइट्स पर ढुढाँ जाने लगा है जहाँ परिवार की पृष्ठ भूमि का पता ही नहीं चलता बल्कि वहाँ निर्जीव वस्तुओं और जानवरों की तरह बड़ी बड़ी मण्डियाँ सजी हैं लड़के और लड़कियों के ।
हमारे समज में एक और बहुत बड़ा संक्रमण बहुत तेजी से पाँव फैला रहा है और वह है कि लड़का और लड़की दोनों कमाने वाले चाहिए इसलिए अधिकांश परिवारों में माता पिता की सेवा तो दुर की बात है अहंकार ऐसे टकरा रहे हैं कि भोजन बनाये कौन यह भी समस्या होती जा रही जिसकी वजह से तलाक, पारिवारिक विघटन, और आत्म हत्या की घटनाएं बढती जा रही हैं। हम भुल चुके हैं कि बड़े घर बड़ी गाड़ी भौतिक संसाधनों के भण्डार के स्थान पर परिवार चलाने के लिए रोटी कपड़ा और मकान के साथ प्रेम, समर्पण आपसी ताल मेल की आवश्यकता ज्यादा है ।
पहले हमारे घरों में न कोई भौतिक संसाधन था, न मनोरंजन का साधन और ना ही कार्य सरल करने के संसाधन उपलब्ध थे । मसाला पीसना, आटा तैयार करना कपड़े धुलना सभी कार्य माताएँ बहनें करती थी, यही उनके मनोरंजन के साधन थे । जबकि वर्तमान काल में लगभग हर घर में कार्य सरल करने के लिए मिक्सी,वाशिंग मशीन आदि, मनोरंजन के लिए विभिन्न चैनलों के साथ टी वी, घण्टों बात करने के लिए मोबाईल आदि संसाधन उपलब्ध हैं फिर भी असंतोष व्याप्त है हर परिवार और प्रत्येक सदस्य के अन्दर व्याप्त है ।
उपयुक्त बातों के साथ दो अन्य कारणों पर विस्तृत नजर डालना चाहूँगा इन दोनों कारणों में पहला है--
सास द्वारा यह भूल कर की उनकी बेटी भी किसी घर की बेटी बनेगी अपनी बेटी के सामने ही उसका महिमा मण्डन कर उसे श्रेष्ट और बहू को तुच्छ सिद्ध करने का प्रसाय करके परिवार के विघटन की बुनियाद रखी जाती है।
दुसरा है बेटी के ससुराल में बेटी के माता पिता द्वारा आवश्यकता से अत्यधिक और अनर्गल हस्तक्षेप करना, मोबाईल की सहज उपलब्धता के कारण बहुत ही बढता जा रहा है।
आज तो लगभग प्रतिदिन घण्टों बातें होती हैं और बातें भी क्या !! --- आज भोजन क्या बनाई, तुम्हारे, देवर,ननद,सास या ससुर ने तो कुछ नहीं कहा, उनको ऐसा नहीं नही करना/ कहना चाहिए, मैं हुँ हमेशा तुम्हारे साथ किसी से डरना नहीं किसी का सहना नहीं आदि आदि। मेरे विचार से सर्वथा अनुचित है इस तरह की बातें कर बेटी के घर में हस्तक्षेप करना।
इस बात से मैं इन्कार नहीं करता कि जिस बेटी का लाड प्यार से माता पिता बचपन से पालन पोषण करके बड़ा करते हैं उसके प्रति मोह होना,उसके सुख दुःख की चिन्ता होना स्वाभाविक है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि अब हमारा अधिकार कम हो गया और यह सब जिम्मेदारी बेटी के पति सास ससुर की हो गयी।
हस्तक्षेप न करने के पीछे भी एक बहुत महत्वपूर्ण कारण है जिस प्रकार अपनी स्वतन्त्रता के साथ जीना चाहता है किसी का हस्तक्षेप नहीं चाहता उसी प्रकार हमारे परिवार की भी स्थिति है। जिस प्रकार पिता पुत्र का व्यवहार, पसन्द, विचार शत प्रतिशत एक समान नहीं होते उसी प्रकार दो परिवारों की परम्परा और रहन सहन एक जैसा नहीं हो सकता भिन्नता स्वाभाविक है।
इन्हीं बातों के साथ रिश्तों, परिवार व समाज को टुटने और बिखरने से बचाने के लिए सबसे एक बात कहना चाहूँगा कि सोच बदलिये
और यह बदलने वाली सोच मेरे विचार से प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग अलग है जिसका उल्लेख निम्न प्रकार से है---
लड़कियों से कहना चाहता हूँ कि -- प्रथम प्रवेश में महाविद्यालय/विश्वविद्यालय और ससुराल दोनों समान ही हैं बेहतर भविष्य के लिए दोनों जगह थोड़ी कम या ज्यादा तो रैगिंग बरदास्त करना ही पड़ता है। जिस प्रकार प्रथम प्रवेश पर कालेज में जुनियर होते हैं और एक दिन सीनियर की श्रेणी में गिनती होती है उसी प्रकार ससुराल में यदि आज बहु हैं तो कल सास बनेंगीं इसलिये सहनशीलता के साथ परिवार के छोटे बड़े सबका सम्मान करना चाहिए जिसका फल एक दिन अत्यंत मधुर और मीठा प्राप्त होगा।
लड़कों से कहना चाहता हुँ कि --- वह माता पिता की भावना के सम्मान के साथ पत्नी की भावनाओं को भी समझने का प्रयास करें उसके सुख दुःख को समझें, परिवार की परम्पराओं का ज्ञान करावें क्योंकि वह आपके भरोसे ही अपना सब रिश्ता छोड़ नये वातावरण में आयी है।
लड़के लड़कियों से संयुक्त रुप से कहना चाहुँगा कि ---- एक दुसरे का सम्मान करें, बड़ों से नियमित रुप से सलाह और आर्शीवाद लेते रहें, बड़ों के अनुभवों का भरपूर लाभ उठावें, कोई निर्णय लेने से पुर्व पुर्ण गम्भीरता पूर्वक सोच समझ लें, सबके जीवन में उतार चढाव तो लगा रहता है इन सब बातों के साथ शीघ्रतापूर्वक कोई गलत निर्णय लेकर आत्मघाती बनने से बचें।
सासु माता लोगों से कहना चाहता हुँ कि ---- बेटी को कभी बहु नहीं बनाया जा सकता बहु को बेटी अवश्य बनाया जा सकता है।
बेटी के साथ खून का रिश्ता अवश्य है लेकिन बहू दुसरे परिवार से आने के बाद भी नौकरानी नहीं गृह लक्ष्मी है, परिवार/कुल का संचालक है, सास ससुर और उनके बेटे के मध्य आजीवन के लिए एक सेतु बन्ध है इसलिए बहू प्रसन्न तो परिवार प्रसन्न अन्यथा परिणाम का मालिक ईश्वर ।
लड़की के माता पिता जी लोगों से कहना चाहुँगा कि ---- लड़की के यहाँ महीने में एक दो बार फोन करके कुशल क्षेम अवश्य पुछ लें और जब तक बेटी यह न कहे कि उसके साथ अत्याचार हो रहा है तब तक पूर्णतया सच्चाई जाने बिना अनर्गल हस्तक्षेप करने से बचें। यदि लड़की के माता पिता अपनी सीमा से बाहर जाकर हस्तक्षेप करते हैं परिणामस्वरूप परिवार टुट सकते हैं इसलिए गम्भीरता पूर्वक विचार करने के बाद ही बेटी के ससुराल वालों से व्यवहार करें लेकिन बेटी को यह विश्वास अवश्य दिला कर रखें कि यदि वास्तव में वह अपनी क्षमता व जानकारी के अनुसार अच्छे परिवार और लड़के की तलाश किये हैं लेकिन फिर भी वास्तव में उसके साथ कोई अत्याचार होता है तो उसके लिए उसके पीहर के द्वार सदैव खुले हैं।
इस लेख की अन्तिम कड़ी में
समाज से मात्र इतना निवेदन करना चाहता हूँ कि ----
समाज के लोग एक पहल करें जिससे विवाह उचित आयु में होने के साथ कम खर्चीला हो क्योंकि धनाढ्य लोग लाखों रुपये बेवजह प्रदर्शन में व्यय करते है और इसके चक्कर मध्यम और निम्न वर्ग के लोग पिस कर कर्ज के बोझ से डुब जाते हैं ।
यह लेख लेखक का निज विचार है । इसका अपवाद और विचार मे त्रुटि सम्भव है। इस लेख का उद्देश्य किसी को भावनात्मक रुप से आहत करना नहीं है।
इस लेख को पुरा पढने और सुविचार संग्रह (suvicharsangrah.com) पर समय देने के लिए समस्त देव तुल्यों का आभार ।
यदि लेख पसन्द आये तो समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन के लिए आर्शीवाद स्वरूप अधिक से अधिक साझा करें।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete