चलेंगे जो अंधेरे उजालो की ओर,
उन ख़्वाशियो का ख्वाब रहने दो।
चढ़ाये जो बैठे हो आदमियत का नकाब,
उसे नक़ाब ही रहने दो।
धधकती आग पूछती है कलेजे की,
'क्या कशूर था उस माशूम का?'
मत कुरेदो, न उछालो स्याही ममता पे ,
भारी है सवाल इसका जवाब रहने दो।
सुनो अब सूखे रगों में खून दौड़ता अच्छा नहीं लगता,
मत दो गूंगी आवाज अब,
उस चीख़ती आवाज को आवाज़ रहने दो ।
कितनी खूबसूरती से खेलते हो ये खेल साहब जानवरो का!
क्या जला रहे चिराग टूटे चौखट पे,
फिर कल जला लेना आज रहने दो।
चढ़ा फूल, डाल पर्दा माशूम से छवि पे,
दरियादिली मगर का ये सवाब रहने दो।
आज उजड़ी है गोद किसी और माँ कि,
मत छेड़ो तेजाब है तेजाब रहने दो।।
सुविचार संग्रह (suvicharsangrah.com) पर लेखों के साथ अब युवा रचनाकार श्री राधे श्याम सिंह 'राधे' ( एक पथिक) की कविताएँ भी आपकी सेवार्थ प्रकाशित होंगी ।
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