अभिजीत मिश्र

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Saturday, April 10, 2021

हथियार बड़ा या प्रेम?








वर्तमान समय में परिवार , समाज, या राष्ट्र हो सबके बीच अपना वर्चस्व कायम करने की एक होड़ लगी हुई है और सब इसके लिए प्रेम को भूल कर हथियार को माध्यम बना चुके हैं । वर्चस्व का नशा हम सब पर इस कदर सर चढ कर बोल रहा है कि हम खुन के रिश्तों पर भी हथियार उठा ले रहे हैं ।

          अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तो स्थिति और भी भयावह हो गयी है हथियार निर्माण, उसकी धमकी और एक दुसरे राष्ट्र पर इसका प्रयोग बहुत सामान्य होता जा रहा है।

      यदि हम भारतीय परिवार और समाज की बात करें तो जिस देश की बुनियाद आपसी प्रेम और सौहार्द से बनी है वहाँ भी हिंसा और हथियार सामान्य सा प्रतीत होने लगा है।

            हम भारतीय यह भूल गये हैं कि यह राम, कृष्ण, बुद्ध और गाँधी की धरती है। इस धरती पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी ने प्रेम के बल पर ही बन्दर और भालू की लम्बी सेना तैयार की, श्री कृष्ण ने प्रेम के बल पर ही सदैव के लिए गोपी और ग्वाल बालों को अपना बना लिया, इसी प्रेम से बुद्ध जी ने न जाने कितने अनुयायी बनाये और गाँधी जी ने सत्याग्रहियों का साथ प्राप्त किया । श्री कृष्ण प्रेम के बल पर ही सभी गायों को एक बासुरी के धुन पर पास बुला लेते थे, प्रेम में ही माता सबरी के झूठे बेर श्री राम जी नें खाये, प्रेम में निसादराज ने राम के चरणों के जल पिये।

            ये उदाहरण इस बात के प्रमाण हैं कि हथियार के भय से प्रबल है प्रेम का बन्धन ।

           हथियार/ ताकत के प्रभाव से किसी में डर पैदा करके कोई काम तो करवाया जा सकता है, उसे अपने नियन्त्रण में किया जा सकता है लेकिन यह कुछ दिनों तक ही प्रभावी होगा । इससे किसी के मन में भय तो उत्पन्न किया जा सकता है लेकिन हृदय को तो प्रेम और सद्व्यवहार से ही जीता जा सकता है और यह जीत स्थाई होगी। हथियार से वश मे किया गया व्यक्ति तभी तक वश में रह सकता है जब तक वह कमजोर है उसके हाथ कोई अवसर नहीं लग जाता क्योंकि हथियार से पराजित किया गया इन्सान सदैव ही ऐसे अवसर की तलाश में रहता कि सामने वाले हथियार युक्त/ताकतवर इन्सान को पराजित कर सके और यह अवसर उसे अपने जीवनकाल में मिल भी जाता है।

               हथियार से प्राप्त विजय अस्थायी होने के साथ ही विनाशकारी भी होता है, जबकि प्रेम से प्राप्त विजय स्थायी और सृजनात्मक होता है और इसका सबसे बड़ा गुण यह है कि प्रेम से विजय श्री प्राप्त करने वाला व्यक्ति न तो खुद को विजयी समझता है न ही सामने वाले पराजित व्यक्ति को पराजित समझ कर अपमानित करता है।

         यह अवश्य स्वीकार किया जा सकता है कि कभी कभी हथियार/ताकत का प्रदर्शन भी आवश्यक हो जाता है, धर्म की रक्षा के लिए समयानुसार भगवान राम और भगवान श्री कृष्ण नें भी हथियार का प्रयोग किया लेकिन उसका परिणाम भी भीषण नर संहार के रुप में ही सामने आया । हमें लोगों को स्थायी सहयोगी बनाना है, लोगों के हृदय  में स्थान बनाना है तो हमें हथियार युक्त हिंसक मार्ग छोड़ कर प्रेम का पथ अपनाना चाहिए लेकिन विश्व पटल पर तो दुर दुर्भाग्य है हमारे देश और समाज का कि हमें अल्पकालिक हिंसायुक्त विजय स्वीकार है लेकिन प्रेम युक्त अहिंसक और स्थाई विजय नहीं, और इससे भी बड़ी दुर्भाग्य की बात यह है कि प्रेम, शालीनता और सरलता के पथ पर अग्रसर व्यक्ति को इस आधुनिक समाज के अधिकांश व्यक्ति मूर्ख और कमजोर समझते हैं।

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