देव तुल्य पाठकगण सुविचार संग्रह (suvicharsangrah.com) पर मैं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी के बारे में अपना विचार प्रस्तुत करने जा रहा हुँ । मेरे विचारों में गलती और विचारों का विरोधाभास सम्भव है।
सदियों से हम सब रामनवमी भी मनाते हैं और विजया दशमी भी मनाते हैं। यह दोनो पर्व भगवान राम से जुड़े हैं । हम पर्व तो मनाते हैं, राम राज्य की बात भी करते और सुनते हैं लेकिन क्या हम इस राम राज्य की कल्पना को साकार करने के लिए यह विचार करते हैं कि सभी देवों में भगवान राम को ही मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहा गया??
क्या हमने कोशिश की भगवान राम के जीवन को पढने समझने और उसे जीवन में उतारने की?? मैं कहुँगा नहीं बिल्कुल नहीं क्योंकि यदि हम जरा सा भी अपने आचरण को उनके अनुरुप बनाने की कोशिश भी करते तो हमारे समाज का स्वरूप ही आज कुछ और होता ।
सबसे बड़ी विडम्बना हमारे समाज की है कि हम किसी देव, ऋषि, मुनि, महापुरुष का चरण तो पूजते हैं लेकिन आचरण नहीं पुजते/आचरण अपने जीवन में उतारने की कोशिश नहीं करते।
वर्तमान प्रतिकूल परिस्थितियाँ जब हमारे चारो तरफ डर, संशय, और एक अनिश्चितता का माहौल बनायें हुए हैं। प्रत्येक व्यक्ति खुद को बीच मजधार मॆं फंसा और खुद को अन्दर ही अन्दर टूटा महसूस कर रहा है तो प्रभु राम के जीवन की प्रेरणा से हम एक नयी उर्जा और सकारात्मक शक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
सुविचार संग्रह ( suvicharsangrah.com ) पर इस लेख के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी के जीवन के कुछ बिन्दुओं/ आचरण पर प्रकाश डालने की कोशिश की गयी है जो हमें एक आदर्श व्यक्ति, आदर्श परिवार, आदर्श समाज, आदर्श राष्ट्र के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करती है।
जीवन -- भगवान राम का जीवन हमेशा उतार चढाव भरा रहा है । मानव जीवन के प्रति भगवान की सबसे बड़ी और पहली सीख तो यही है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में उतार-चढाव, दुःख-सुख लगा रहता है लेकिन यदि हमने आत्मबल और संयम को बनाये रखा तो जीवन में आने वाले बड़े से बड़े चुनौती का सामना हम बड़े ही सरल और सहज ढंग से कर लेंगें।
अतः हमें जीवन में अपना आत्मबल और संयम सदैव बनाये रखना चाहिए ।
व्यक्तित्व -- प्रभु राम का व्यक्तित्व बिल्कुल सरल, सहज, शान्त, शीतल और संतुलित रहा । परिस्थितियाँ उनके जीवन पर कभी हबी नहीं हुयीं । यदि हम यह कहें कि उन्होंने परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया तो यह गलत नहीं होगा क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में संतुलन कभी नहीं खोया ।
शालीनता -- माता सीता के हरण उनका पता लग जाने के बाद लंका पहुँचने में सबसे बड़ी बाधा समुद्र पार करना था, भ्राता लक्ष्मण की इच्छा थी कि अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए समुद्र सुखा दिया जाय लेकिन प्रभु को यह स्वीकार नहीं था, उस समय भी प्रभु राम शालीनता का परिचय देते हुए समुद्र से विनय ही किये क्योंकि वह चाहते थे कि समुद्र की मर्यादा भी बची रहे और समुद्री जीव जन्तुओं को नुकसान भी न पहुँचे और हुआ भी ऐसा ही स्वयं समुद्र ने बीच का विकल्प प्रभु के सामने रखा।
इससे यह स्पष्ट है कि यदि हम जीवन में शालीनता और संयम बनाये रखें तो हर परिस्थिति पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
दृढ़ संकल्प व वचन पालन -- प्रभु राम से हमें सीखना चाहिए कि वह किस प्रकार वचन का सम्मान करना चाहिए और अपने संकल्पों के प्रति कैसे दृढ़ रहना चाहिए । युवा अवस्था में भगवान राम का वन जाना और साधनों के अभाव में वानर भालुओं की छोटी सेना लेकर लंका विजय प्रभु राम के वचन पालन और दृढ़ संकल्प को ही प्रदर्शित करता है जिसका अभाव आज हम सबमें देखा जा सकता है।
छुआ छुत, पुर्वाग्रह और नकारात्मकता से दुर सबका सम्मान -- प्रभु राम का चरित्र हमें बहुत बड़ा सन्देश देता है कि किसी भी स्थिति में हमें पूर्वाग्रह और नकारात्मकता से ग्रसित नहीं होगा चाहिए । वन गमन में माता कैकेयी और मन्थरा की अहम भूमिका थी, शत्रुघ्न जी का व्यवहार कुछ उनके प्रति खराब हुए लेकिन प्रभु रामचन्द्र जी ने उनको भी समझाया, अयोध्या आने पर सर्वप्रथम कैकेयी के कक्ष में गये, माता सबरी के जुठे बेर खाये और तमिल भाषा में लिखत एक उल्लेख मिलता है अपने राजा बनने अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रुप में उन्होंने केवट राज निषाद को आमन्त्रित किया। भगवान राम ने कभी नकारात्मक भावना, छल-कपट, दंभ को अपने हृदय में स्थान नहीं दिया और अपने साथ के लोगों का मार्ग दर्शन करते रहे लेकिन वर्तमान समय में राम राज्य की बात करने वाले लोग भी पूर्वाग्रह, नकारात्मकता, छल-कपट और दंभ के शिकार मिलेंगे।
शास्त्रों इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि वही व्यक्ति प्रभु राम का कृपा पात्र वही बन सकता है जो छल-कपट, राग, द्वेष, क्रोध से दुर होगा चाहे वह स्त्री, पुरुष, नपुसंक कोई भी हो ।
भाषा एवं दृष्टिकोण -- प्रभु राम की भाषा सदैव मधुर और दृष्टिकोण विस्तृत रहा परिस्थिति चाहे जो रही हो और सामने कोई भी रहा है जिसका दो बड़े उदाहरण हैं उनके वन गमन का कारण बनी माता कैकेयी के प्रति उनकी भाषा, उदारता और सम्मान तथा शिव धनुष टूटने पर भगवान परशुराम का क्रोध में बोलने पर भी उनके प्रति प्रभु का व्यवहार । प्रभु सबकी सुन लेते और बड़ी ही मधुर मुस्कान के साथ सरलता और सहजता से समझा कर उसका क्रोध शान्त कर देते और गलतफहमी भी दुर कर देते। प्रभु राम का दृष्टिकोण इतना विस्तृत था कि उसको शब्द दे पान कम से कम मेरे वश की बात नहीं है मैं बस इतना कह सकता हुँ कि वह समस्त जीव से प्रेम करते थे और इसका सन्देश देते थे लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि उनको मानने वाले सनातनी हिन्दू समाज में ही कोई किसी की सुनने को तैयार नहीं है सुनाने को सब तैयार बैठे हैं बस अवसर मिलना चाहिए, रही दृष्टिकोण की बात तो समस्त जीव और मानव जाति की छोडिए साहब आज के इन्सान का दृष्टिकोण इतना संकुचित हो गया है कि संयुक्त परिवार छोडिए माता पिता भी आज सबको बोझ लगने लगे हैं।
न्याय, नियम और संयम -- प्रभु सदैव खुद को संयम और नियम के साथ न्याय के लिए समर्पित रखा । न्याय के लिए भगवान राम ने न जाने कितने ही त्याग किये । संयम, न्याय और नियम का पालन करने और इसके लिए त्याग करने का उनसा कोई अन्य उदाहरण शायद ही कोई मिले । बड़ी विडम्बना है साहब हमारे समाज की जिसे हम अपना आदर्श कहते हैं, जिनके हम भक्त बनते हैं उन्हीं के आचरण को हम अपने जीवन में उतारने की कोशिश नहीं करते हैं । नियम और कानून से रहना, न्याय की बात करना यह सब तो हमारे समाज में दिवा स्वप्न सा लगता है । आज तो नियम और कानून तोड़ना बच्चों के खिलौने तोड़ने सा हो गया है और रही बात न्याय के लिए त्याग करने की तो आज त्याग कौन करे न्याय कौन दिलाये ?? आज तो दुसरों के अधिकारों का हनन करने में लोग अपने आप को गौरवान्वित महसूस करने लगे हैं।
शत्रुओं से भी करें ज्ञानार्जन -- भगवान राम के चरित्र से हमें एक बहुत बड़ी सीख मिलती है कि ज्ञान जहाँ से जिससे प्राप्त हो उससे मर्यादित तरीके से प्राप्त करें चाहे वह हमारा पराजित शत्रु ही क्यों न हो। इसका उदाहरण उस प्रसंग से मिलता है जब रावण को युद्ध में पराजित करने के बाद प्रभु अपने अनुज लक्ष्मण से कहते हैं कि जाओ और रावण से शिक्षा ग्रहण करो रावण भले ही हमारा शत्रु था लेकिन वह महान शिव भक्त, प्रकाण्ड विद्वान, माता सरस्वती का कृपा पात्र और शिव ताण्डव का रचयिता है।
रिश्तों की मर्यादा का निर्वहन -- प्रभु राम के जीवन से जो सबसे बड़ी सीख हमें लेनी चाहिए वह है रिश्तों की मर्यादा का सम्मान करना उनका निर्वहन करना क्योंकि आज आये दिन रिश्तों की मर्यादा तार-तार हो रही है । प्रत्येक रिश्ते की मर्यादा रखना उसका निर्वहन करना भगवान राम के जीवन चरित्र का एक अद्भुत और अद्वितीय गुण था । पुत्र, भाई, पति, मित्र, राजा प्रत्येक रिश्ते की मर्यादा का पालन भगवान राम ने की जिसके कारण वह मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी का जीवन और चरित्र अद्भुत और अद्वितीय था। वह युगों युगों तक आम जनमानस में विराजमान रहेगा। एक आदर्श समाज और राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यकता मात्र है आम जनमास द्वारा उसे अपने चरित्र में उतारने की ।
भगवान राम के चरित्र का वर्णन मुझ जैसा अल्प ज्ञानी कर ही नहीं सकता सुविचार संग्रह ( suvicharsangrah.com ) पर मेरा एक छोटा सा प्रयास है अपने अल्प ज्ञान के आधार पर उनके चरित्र के कुछ प्रमुख बिन्दुओं को आप देवतुल्य पाठकों के बीच रखने की इसमें मुझे कहाँ तक सफलता प्राप्त हुयी यह आप ही बता सकते हैं।
सुविचार संग्रह ( suvicharsangrah.com ) पर समय देने/पुरा लेख पढ़ने के लिए आप सभी देव तुल्य पाठकों का हृदय से आभार प्रकट करने के साथ सुविचार संग्रह ( suvicharsangrah.com ) आप सभी से निवेदन करता है कि परिवार, समाज और राष्ट्र के एक आदर्श सदस्य की भुमिका का निर्वहन करते हुए कोरोना से बचाव के दिशा निर्देशों का पालन करें और दुसरों को भी प्रेरित करें।
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