मनुष्य गलतियों का खजाना है, मनुष्य जाने अनजाने में गलतियाँ कर ही देता है। यदि कोई सोचे या कहे कि वह गलतियाँ नहीं करता तो यह मिथ्या ही नहीं उस व्यक्ति का अहंकार भी कहा जा सकता है।
इन्सान अपने जीवन काल में अनेक गलतियाँ करता है उसमें से एक प्रमुख गलती है रिश्तों के निर्वहन में गलती। हम अपने जीवन काल में अक्सर अन्य लोगों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनहीन एवं संवादहीन हो जाते हैं और विशेषतया उनके प्रति जो हमारे बहुत करीब हैं।
हमारी इस गलती, संवादहीनता और संवेदनहीनता से हमारे रिश्तों के बीच नाराजगी और नीरसता स्थान बना लेती है। इस नाराजगी और नीरसता से बचने के लिए रिश्तों के मध्य सामन्जस्य और आपसी समझ अति आवश्यक है लेकिन दुर्भाग्य है कि वर्तमान समय में इन्सान एक दुसरे को समझने की बजाय परख रहा है।
मनुष्य के जीवन में जो रिश्ते आजीवन बने रहते हैं वह मनुष्य के आपसी सामंजस्य से सम्भव होता है न की मनुष्य की पुर्णता से क्योंकि कोई न कोई कमी प्रत्येक व्यक्ति में है।
एक अच्छा इन्सान बनने से पहले इन्सान को एक दुसरे का ध्यान रखना सिखना होगा क्योंकि मेरे विचार से अच्छा इन्सान बनने के प्रयास से कहीं अधिक सन्तुष्टि एक दुसरे का ख्याल रखने में मिलती है लेकिन बहुत बड़ी विडम्बना हो गयी है समाज की कि लोग एक दुसरे को समझने की कम और परखने की ज्यादा कोशिश कर रहे हैं।
दुसरे को समझने का प्रयास, दुसरों को समझने की आदत इन्सान की बहुत बड़ी उपलब्धि है और इस गुण से ख्याति में स्वतः वृद्धि सुनिश्चित है और ख्याति में वृद्धि हमारे जीवन का सबसे बड़ा निवेश है जिसमें निवेश न के बराबर है।
संक्षिप्त में कहें तो रिश्तों में प्रगाढता के लिए हमें उदार बनना होगा । उदार बनने का मतलब बिना किसी के कुछ कहे दुसरों/अपनों बारे में विचार करना, उनकी भावनाओं को समझने का प्रयास करना, उनका खयाल रखना है न कि लोगों द्वारा स्वयं का दुरुपयोग कराना/अपना धन आँख बन्द करके बिना वास्तविक स्थिति जाने या किसी व्यक्ति के बारे में गहनता पुर्वक जाने बिना उस पर खर्च कर देना ।
सुविचार संग्रह (suvicharsangrah.com) पर अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आभार ।🙏🙏
सदैव सुझाव एवं सहयोग का प्रार्थी ।
No comments:
Post a Comment