अभिजीत मिश्र

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Saturday, November 13, 2021

मन्दिर में पैसे फेंकना उचित या अनुचित??

 


लगभग हम सब ने अनेको बार देखा होगा कि हममे से अधिकांश लोग मन्दिर मे अपनी जेब से सिक्के या कोई नोट निकाल कर देव/देवी की प्रतिमा के सम्मुख फेंकते हैं तदुपरान्त करवद्ध या दण्डवत प्रणाम कर अपनी मनोकामना पुर्ति हेतु अपने इष्ट से  प्रार्थना करते हैं। 

क्या कभी हम लोगों ने यह विचार किया है कि हमारी यह क्रिया कितनी उचित या अनुचित है??

जरा हम विचार करें कि यदि हमें आवश्यकता हो, हम किसी से आर्थिक मदद माँगे और वह हमारे सामने पैसे फेंककर चला जाये तो हम कैसा महसूस करेंगें ??

शायद किसी को भी अच्छा नहीं लगेगा ।

हम यदि बहुत विषम परिस्थिति में नहीं है या हमारा स्वाभिमान जाग उठा तो उस व्यक्ति से हम पुछ ही बैठेंगें कि - "मैं भिखारी हुँ क्या?" 

        हमें विचार करने की आवश्यकता है कि किसी धार्मिक स्थल पर अपने इष्टदेव/देवी के सामने जब हम चंद पैसे उछालते/फेंकते हैं तो भगवान या भगवती को कैसा महसूस होता होगा?? 

        हमारे बीच से कुछ लोग प्रश्न कर सकते हैं कि पत्थर की प्रतिमा क्या महसूस करेगी या उसमें कैसी भावना, तो मेरे विचार से ऐसे व्यक्ति का किसी भी धार्मिक स्थल पर जाना व्यर्थ है।

चन्द रूपये चढाकर कर हम लाखों करोड़ों की कामना करते हैं, अपने इष्ट के सामने शर्त रखते है कि हे देव/देवी मेरा फलां काम पुर्ण हो जाय तो कथा/कीर्तन करवाऊँगा, मैं भंडारा करवाऊंगा, 

मेरा यह संकट टाल दो, मैं इतने रूपये का दान करूंगा।

कार्य होने से पुर्व हम कुछ नहीं करेंगें जो करेंगें कार्य होने के बाद करेंगें ।

         इन्सान को तो रिश्वत दे कर काम करा ही रहे हैं हम, जगत संचालक भगवान/भगवती के सामने भी रिश्वत देने सरीखा कार्य कर रहे हैं।

     इससे भी आगे बढ के कुछ लोगों को यह कहते हुए भी सुना जा सकता है कि भगवान मेरा ये काम कर देंगें तो मै भगवान को मानना शुरू कर दूँगा। ऐसे इन्सानों से मैं पुछना चाहता हूँ कि

भगवान को क्या जरूरत पडी है कि वो किसी को अपने होने का प्रमाण दें????

कहा गया है कि

"दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया"

तो

ऐसे पैसे उछालने/फेंकने वाले, मन्नतें मानने वाले व्यक्तियों को समझना चाहिए कि हम इन्सान उसको क्या देंगे जो सम्पूर्ण विश्व को पाल रहा है ।

भगवान को हमारी सच्ची भक्ति, भावना, विश्वास, प्रेम चाहिए धन की आवश्यकता भगवान/भगवती को नहीं है । 

इन सब तथ्यों के बाद भी इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि उनके धाम को व्यवस्था के लिए धन की आवश्यकता हो सकती है लेकिन उन्हें नहीं । 

 हम सबको सदा सर्वदा यह ध्यान रखना चाहिए कि जब भी हम किसी धार्मिक स्थल पर भगवान या भगवती के सामने जायें तो अपने पद, प्रतिष्ठा, पैसे, ज्ञान आदि के अहंकार को त्याग कर ही जायें । 

क्योंकि हमारे पास जो कुछ भी है यह सब उन्ही का है जो हमारे कर्मो के प्रतिफल के रुप में हमें प्राप्त है।

       यह लेख लेखक का व्यक्तिगत विचार है इसका उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं है।

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