अभिजीत मिश्र

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Sunday, November 28, 2021

अवसाद (Depression)



जिस प्रकार अवसाद लोगों को अपने सिकंजे में कसना प्रारम्भ कर दिया है उसे देखते हुए यह कहना शायद गलत न होगा कि यह एक अनियंत्रित मानसिक बीमारी आने वाले भविष्य में हो जायेगी ।

      सुविचार संग्रह (suvicharsangrah.com) पर इस लेख के माध्यम से इसी मानसिक बीमारी के प्रमुख कारण का उल्लेख करते हुए लेखक ने अपना विचार रखने की कोशिश किया है । 

             अवसाद केवल अधिक आयु वाले व्यक्ति को ही नहीं बल्कि युवाओं को भी अपने गिरफ्त में बहुत तेजी से ले रहा है और बढती आत्म हत्या और अपराध की दर का एक प्रमुख कारण अवसाद भी है तो आइये अवसाद के प्रमुख कारणों को जानने का प्रयास करते हैं ।

युवाओं में अवसाद : वर्तमान समय में बड़ी संख्या में युवा वर्ग भी अवसादग्रस्तता के शिकार हो रहे हैं मेरे विचार से जिसका प्रमुख और पहला कारण अभिभावकों में यह होड लगी है कि फलां व्यक्ति का लड़का डाक्टर/इन्जीनीयर बन गया है तो मेरे को भी डाक्टर/इन्जीनीयर बनना ही होगा जिससे अभिभावक द्वारा बालकों पर जबरदस्ती दबाव बनाकर उनके स्वभाव/इच्छा के विपरीत विषय पढ़ने पर मजबूर करना है बालक दबाव में वह विषय पढ तो लेता है लेकिन रुचि और ज्ञान के अभाव में अच्छे अंक या आगे चलकर सफलता नहीं मिलती है जिससे वे कुण्ठा के शिकार होते हैं और आगे चल कर यह कुण्ठा अवसाद का रुप ले लेती है।

युवाओं में अवसाद का दूसरा कारण है उनके बड़े सपने सपने देखना कोई अपराध नहीं है न सपने देखने पर किसी प्रकार का कोई टेक्स लगना है साथ ही सपने खुद के लिए हैं तो उसमें कंजुसी क्यों की जाय । आज के युवा बड़े बड़े सपने तो देखते हैं लेकिन अधिकांश मुँगेरी लाल के हसीन सपने ही होते हैं जैसा पहले ही कह चुका हुँ सपने देखना अपराध नहीं है लेकिन सपने देखने से पुर्व स्वयं का अध्ययन युवाओं को करना चाहिए कि जो सपने उनके दिमाग में घुम रहे हैं उसे पुरा करने की क्षमता/योग्यता उनमें है या नहीं यदि क्षमता नहीं है तो अपनी क्षमतानुसार सपने देखें या सपनों के अनुसार खुद में क्षमता विकसित करें लेकिन अधिकांश युवा ऐसा कर नहीं पाते और अवसाद के शिकार हो जाते हैं।

युवाओं में अवसाद का तीसरा कारण सरकारी नौकरी की अंधा दौड़ आज युवा वर्ग में डिग्री लेने की मुख्य वजह शिक्षा ग्रहण कर स्वरोजगार को प्राथमिकता देने के स्थान पर सरकारी नौकरी को लक्ष्य किया जा रहा है और यह लक्ष्य निर्धारित करते समय युवा अपनी क्षमता तो भूल ही जाता है और इस बात को भी नजर अंदाज़ कर बैठता है कि जितनी संख्या में डिग्री धारी तैयार हो रहे हैं उतनी संख्या में सरकारी नौकरी का सृजन कभी भी कोई सरकार नहीं कर सकती।

युवाओं की अवसादग्रस्तता का एक प्रमुख कारण मध्यम/छोटे स्वरोजगारी युवा व बेरोजगार युवाओं का समाज द्वारा घोर उपेक्षा आज के समाज में छोटे व्यासायी युवा या सरकारी नौकरी प्राप्त करने में असफल युवाओं की घोर उपेक्षा हो रही है चाहे वह युवा सुशील, सभ्य, सदाचारी ही क्यों न हो इसी उपेक्षा के क्रम में लोग कर्ज में डुब कर बेटी को सरकारी नौकरी वाले युवा के साथ विदा करने को तैयार  बैठे हैं लेकिन उसी खर्च या उससे भी कम खर्च में किसी संस्कारित परिवार में सभ्य बेरोजगार युवा को रोजगार करा कर या छोटा व्यवसायी युवा स्वीकार नहीं है। इस उपेक्षा/दृष्टिकोण से अधिक आयु वाले अविवाहित युवा व युवतियां तेजी से अवसादग्रस्त होते जा रहे हैं।

अवसादग्रस्तता के अन्य कारणों का उल्लेख निम्नलिखित है

अनियंत्रित इच्छा/दिखावा :- आज के भौतिकवादी युग में लगभग प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा अनियंत्रित है हम सब भौतिक संसाधनों को प्राप्त करनें की होड में लगे हुए हैं दूसरे शब्दों में कहें तो हम सभी अपनी आवश्यकता की पुर्ति न करके अपनी क्षमता को नजरान्दाज कर अपने पडोसी/मित्र/रिश्तेदार को देख उनके अनुसार दिखने और उनके इतना भौतिक संसाधन जुटाने की कोशिश में लग जाते हैं जो हमें कर्जदार भी बना देता है और कर्ज का यह दबाव अवसाद का कारण बन जाता है।

आय में उतार चढ़ाव :- अधिकांशतः यह देखने में आता है कि आय बढने के साथ ही हम अपने खर्च और रहन सहन का स्तर बढाते चले जाते हैं लेकिन किन्हीं कारणों से यदि हमरी आय कम हो जाती है तो हम वह स्तर बनाये रखने में अक्षम होने लगते हैं और धीरे धीरे अवसाद की आगोश में समा जाते हैं। 

दायित्वों/खर्च के अनुपात में आय का न बढना :- समय के साथ हमारे दायित्व बढते जाते हैं लेकिन बढते दायित्वों के सापेक्ष हमारी आय नहीं बढ़ती लेकिन ऐसी दशा में भी हमारे सामाजिक रहन सहन का स्तर, हमारे महत्वाकांक्षा को हम कम करने को सहजता से तैयार नहीं हो पाते हैं । हमारी यही अस्वीकार्यता ही हमें असहज बना कर अवसाद की गोद में बैठा देती है।

स्वयं से अधिक दुसरों का ध्यान रखना:- यदि अवसादग्रस्त व्यक्तियों का अध्ययन किया जाय तो यह सामने आयेगा कि उनमें से अधिकांश व्यक्ति अत्यंत सरल और सहज स्वभाव के होंगे जो स्वयं से ज्यादा दुसरों का ख्याल रखते हैं, दूसरों की खुशी, दुसरों की इच्छा पूर्ति के लिए अपनी इच्छा और खुशी को बलिदान कर देते हैं अपने लिए समय ही नहीं देते ऐसे व्यक्ति की स्वयं के प्रति उपेक्षात्मक व्यवहार उन्हें धीरे धीरे कुण्ठीत करती रहती है और यदि वह जिनकी खुशी के लिए अपनी खुशी का बलि देता उनके द्वारा वह कभी उपेक्षित कर दिया जाता है तो यह उपेक्षा घी में आग का काम करता और वह निःसन्देह ऐसा सहन नहीं कर पाता और अवसादग्रस्त हो जाता है ।

अत्यधिक अपेक्षा :- अक्सर देखा जाता है कि हममे से अधिकांश लोग स्वयं से ज्यादा दुसरे से अपेक्षा कर के बैठे होते हैं चाहे हम उसे सहयोग दिये हों या उसे हम अपना अत्यंत घनिष्ठ/प्रिय मानते हों । यह अपेक्षा आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, या समय के रुप में सहयोग की हो सकती है । हमारे आवश्यकता पर जब यही अपेक्षा पूर्ण नहीं होती या अगले व्यक्ति द्वारा हम उपेक्षित कर दिये जाते हैं तो हममें से अधिकांश व्यक्ति यह सहन नहीं कर पाते और अवसादग्रस्त हो जाते हैं।

  निवारण :-

जहाँ तक निवारण की बात है मेरा निज अनुभव और विचार है कि चिकित्सा जगत के किसी क्षेत्र में अवसाद का स्थाई समाधान शायद नहीं है। चिकित्सक द्वारा दवा से तत्कालीन नियन्त्रण/आराम तो पहुँचाया जा सकता है लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है । स्थायी समाधान स्वयं के पास ही है आत्मानुशासन के रुप में । 

अवसाद से बचाव के कुछ प्रमुख बिन्दु इस प्रकार से हैं-

१. सबसे पहली बात तो अभिभावक अपने बच्चों की क्षमता और रुचि का ध्यान देते हुए उसके भविष्य की बुनियाद रखते हुए सकारात्मक दिशा प्रदान करें।

२. युवा वर्ग अपनी क्षमता का अध्ययन करके अपना लक्ष्य निर्धारित करने के साथ शिक्षा/डिग्री लेते हुए स्वयं को मानसिक रुप से इसलिए भी तैयार रखें की यदि जीविकोपार्जन के लिए स्वयं का छोटा/मध्यम व्यवसाय करना पड़े तो मानसिक रुप से आहत न हों।

३. रिश्तेदार, कन्या पक्ष और समाज अपना दृष्टिकोण बदले संस्कारी छोटे व्यवसायी एवं बेरोजगार युवाओं का समाज में यथोचित सम्मान हो ।

४.  हम अपना व्यवहार ही शुरु से ऐसा रखें कि अवसादग्रस्तता दूर दूर तक नजर ही न आवे जैसे इच्छा पूर्ति/दिखावे के स्थान पर आवश्यकता पूर्ति पर ध्यान दें।

५. आय से कम व्यय करें, अपना व्यवहार एवं व्यय ऐसा रखें कि समय के साथ दायित्व वृद्धि बोझ न महसूस हो।

६.  बढ़ते आय के साथ हम अपना आचरण व्यवहार को संयमित रखने के साथ ही साथ अपने रहन सहन को ऐसा नियन्त्रित रखें कि यदि भविष्य में आर्थिक गिरावट का सामना करना पड़े तो हम बहुत प्रभावित न हों।

७. भविष्य की आकस्मिक परिस्थितियों के लिए अपनी आय से कुछ बचत करके रखें।

८. अपने आपको इस प्रकार तैयार/मजबूत रखें, अपना रहन सहन का स्तर व व्यवहार ऐसा सामान्य रखें की जीवन में आर्थिक गिरावट हो तो किसी को कुछ कहने का अवसर न मिले और अपने संचय के बल पर हम उससे दृढ़ता से हम निपट सकें। 

९. सदैव सकारात्मक रहें अपने रिश्तों एवं जीविकोपार्जन के व्यस्त समय में से प्रति दिन दो तीन घण्टे अपने लिए निकालें जिसमें कुछ सैर योगा प्राणायाम करें सकारात्मक और ऊर्जावान व्यक्ति के सम्पर्क में रहे कुछ अपनी पसन्द के संगीत सुनें सकारात्मक लेख पढ़े ।

१०. अन्तिम और सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु भूत के पश्च्याताप और भविष्य के बारे में बहुत सोचना छोड़ पहले की गलतियों से सीख लेते हुए भविष्य को बेहतर बनाने के लिए वर्तमान को सकारात्मक ढंग से जीने का प्रयास करें क्योंकि बहुत अधिक भूत और भविष्य के बारे में सोचने से भूत की गलतियाँ हमारे अन्दर कुण्ठा और भविष्य हमारे अन्दर चिंता की भावना को  बढाती ही है साथ में हमारे वर्तमान के आनन्द को छिनने के साथ हमारी सकारात्मक ऊर्जा का भी नास करती है।

सु्विचार संग्रह ( suvicharsangrah.com ) पर प्रकाशित यह लेख जिसमें अवसाद के कारण और निवारण का उल्लेख है यह लेखक का निज विचार है। इस लेख का उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं है। 

सुविचारसंग्रह ( suvicharsangrah.com ) पर समय देनें/पुरा लेख पढने के लिए सभी सम्मानित पाठकों का आभार साथ ही आर्शीवाद व सहयोग स्वरुप भावी सुधार के लिए टिप्पणी की अपेक्षा है। 

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