जिस नारी/मातृ शक्ति की उपेक्षा कर परम् पिता परमेस्वर भी जगत का संचालन करनें में शायद अक्षम हो जायें उस नारी शक्ति के लिए मात्र एक दिन के लिए सोशल मीडिया पर अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई की लडी सी लग गयी ।
हम कितना अन्धानुकरण करेंगें उस पाश्चात्य संस्कृति का जिसके लिए किसी सम्बन्ध या नारी का कोई महत्व नहीं है, जो सम्बन्धों के सम्मान के लिए एक दिन निर्धारित करता है ।
हम भुलते जा रहे हैं अपनी संस्कृति और सभ्यता को, हम उस देश के वासी हैं जिसकी भाषा संस्कृत है और पुरा विश्व उस पर खोज कर रहा है, जिस देश में लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा अनेक रुपों में नारी शक्ति की प्रतिदिन पुजा होती है, जिस देश में रक्षाबन्धन और भैया दुज जैसे त्यौहारों पर हम नतमस्तक हो नारी शक्ति का सम्मान करते हैं, जिस देश में कुँवारी कन्या के रुप में नारी शक्ति बचपन से ही पुजी जाने लगती है, जिस देश में मातृ शक्ति का पाठ बच्चों को नियमित पढाया जाता है, उस देश में नारी शक्ति के सम्मान के लिए एक दिन का निर्धारण कहाँ तक उचित है ? मैं कुछ कहने में अक्षम हुँ ।
महिलाओं के सशक्तिकरण और सम्मान की बात मात्र एक दिन करने वाले पुरुष प्रधान समाज के उन माननीय लोगों से प्रश्न है -
कहाँ चला जाता है नारी सम्मान जब हमारी जबान पर माँ-बहन की गाली होती है, जब दुसरे के माँ,बहन,बेटी को देख भद्दे बोल हमारी जबान से निकलते हैं, जब अश्लील साहित्य, चित्र और फिल्मों का हम संग्रह करते हैं, जब हम कन्या भ्रुण हत्या करते हैं ।
यदि वास्तविक रुप में हमें मातृ शक्ति को मजबुत करना है तो पहले अपनी सोच बदलनी होगी, उन्हें यथोचित सम्मान और अधिकार देना होगा , नारी का हर रुप हमारे लिए पुज्यनिय है ।
मातृ शक्ति के प्रत्येक रुप को मेरा प्रणाम।🙏
सुविचार संग्रह ( suvicharsangrah.com) पर समय देने/पुरा लेख पढ़ने के लिए आप सभी देवतुल्य पाठकों का आभार के साथ आर्शीवाद स्वरूप विचारों व लेखनी में और शुद्धता लाने हेतु सुझाव की प्रार्थना ।
👌👌
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