अभिजीत मिश्र

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Saturday, March 12, 2022

महिला दिवस विशेष (अन्तिम भाग)









सुविचार संग्रह (suvicharsangrah.com) पर आप सभी देवतुल्य पाठक गण का स्वागत है आइये अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष पर लेख के दुसरे और अन्तिम भाग में पढते हैं लेखक के विचार को 

'महिला'/ 'नारी’

नारी शब्द में इतनी ऊर्जा है, कि इसका उच्चारण ही मन-मस्तिष्क को झंकृत कर देता है, इसका पूर्ण स्वरूप मातृत्व में विकसित होता है। नारी, मानव की ही नहीं अपितु मानवता की भी जन्मदात्री है, क्योंकि मानवता के आधार रूप में प्रतिष्ठित सम्पूर्ण गुणों की वही जननी है। जो इस ब्रह्माण्ड को संचालित करने वाले विधाता है, उसकी प्रतिनिधि है नारी। अर्थात् समग्र सृष्टि ही नारी है, इसके इतर कुछ भी नही है।

अक्सर यह होता है कि जब इस सांसारिक आवरण में फंसते या मानव की किसी चेष्टा से आहत हो जाते हैं तो बरबस हमें एक ही व्यक्ति की याद आती है और वह है माँ । अत्यंत दुख की घड़ी में भी हमारे मुख से जो ध्वनि‍ उच्चारित होती है वह सिर्फ माँ ही होती है। क्योंकि मां की ध्वनि आत्मा से ही गुंजायमान होती है  और शब्द हमारे कंठ से निकलते हैं, लेकिन मां ही एक ऐसा शब्द है जो हमारी आत्मा से निकलता है।

 मातृत्वरूप में ही उस परम शक्ति को मानव ने पहली बार देखा और बाद में उसे पिता भी माना।

    भारतीय संस्कृति में तो स्त्री ही सृष्टि की समग्र अधिष्ठात्री है। पूरी सृष्टि ही स्त्री है, क्योंकि इस सृष्टि में बुद्दि, निद्रा, सुधा, छाया, शक्ति, तृष्णा, जाति, लज्जा, शांति, श्रद्धा, चेतना और लक्ष्मी आदि अनेक रूपों में स्त्री ही व्याप्त है। इसी पूर्णता से स्त्रियां भाव-प्रधान होती हैं।

        भारतीय संस्कृति में नारी का उल्लेख जगत्- जननी आदि शक्ति-स्वरूपा के रूप में किया गया है।

यत्र नार्यस्‍तु पूज्‍यन्‍ते रमन्‍ते तत्र देवता:।

     जहाँ नारी का समादर होता है वहाँ देवता प्रसन्न रहते हैं 

      जिस घर में सद्गुण सम्पन्न नारी सुख पूर्वक निवास करती है उस घर में लक्ष्मी जी निवास करती हैं ।

        हिन्दुस्थान में सदैव नारी को उच्च स्थान दिया गया है।       आदिकाल से ही हमारे देश में नारी की पूजा होती आ रही है। आज भी आदर्श भारतीय नारी में तीनों देवियाँ विद्यमान हैं। अपनी संतान को संस्कार देते समय उसका ‘सरस्वती’ रूप सामने आता है। गृह प्रबन्धन की कुशलता में ‘लक्ष्मी’ का रूप तथा दुष्टों के अन्याय का प्रतिकार करते समय ‘दुर्गा’ का रूप प्रगट हो जाता है।

किसी भी मंगलकार्य को नारी की अनुपस्थिति में अपूर्ण माना गया। 

सृष्टि के विधि-विधान में नारी सृष्टिकर्ता ‘श्रीनारायण’ की ओर से मूल्यवान व दुर्लभ उपहार है। नारी 'माँ’ के रूप में ही हमें इस संसार का साक्षात दिग्दर्शन कराती है, जिसके शुभ आशीर्वाद से जीवन की सफलता फलीभूत होती है। माँ तो प्रेम, भक्ति तथा श्रध्दा की आराध्य देवी है। तीनों लोकों में ‘माता’ के रूप में नारी की महत्ता प्रकट की गई है। जिसके कदमों तले स्वर्ग है, जिसके हृदय में कोमलता, पवित्रता, शीतलता, शाश्वत वाणी की शौर्य-सत्ता और वात्सल्य जैसे अनेक उत्कट गुणों का समावेश है, जिसकी मुस्कान में सृजन रूपी शक्ति है तथा जो हमें सन्मार्ग के चरमोत्कर्ष शिखर तक पहुँचने हेतु उत्प्रेरित करती है, उसे ”मातृदेवो भव” कहा गया है।

           हमारी संस्कृति में प्राचीन काल से ही महान नारियों की एक उज्ज्वल परम्परा रही है। सीता, सावित्री, अनुसुइया जैसी तेजस्विनी; मैत्रेयी, गार्गी अपाला जैसी प्रकाण्ड विदुषी, और कुन्ती जैसी क्षात्र धर्म की ओर प्रेरित करने वाली तथा एक से बढ़कर एक वीरांगनाओं के अद्वितीय शौर्य से हिन्दुस्थान का इतिहास भरा पड़ा है। वर्तमान काल खण्ड में भी महारानी अहल्याबाई, माता जीजाबाई, दुर्गावती और महारानी लक्ष्मीबाई जैसी महान नारियों ने अपने पराक्रम की अविस्मरणीय छाप छोड़ी । इतना ही नहीं, पद्मिनी का जौहर, मीरा की भक्ति और पन्ना के त्याग से हिन्दुस्थान की संस्कृति में नारी को ‘ध्रुव तारे’ जैसा स्थान प्राप्त हो गया। हिन्दुस्थान में जन्म लेने वाली पीढ़ियाँ कभी भी नारी के इस महान आदर्श को नहीं भूल सकती। हिन्दू संस्कृति में नारी की पूजा हमेशा होती रहेगी।

           संक्षेप मे कहना हो तो इतना ही कहेंगे नारी यानी हमारा हृदय और हृदय मे स्वयं  परमात्मा विराजमान हैं...........साक्षात ईश्वर स्वरुप है देवी.......

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