यदि हम शिक्षा ग्रहण करना चाहें तो हमारी प्रत्येक गलती, हमारे जीवन और समाज का हर एक व्यक्ति चाहे वह कितना भी बुरा हो हमें कोई न कोई शिक्षा देने की क्षमता रखता है आवश्यकता मात्र है हमें अपने अन्दर सकारात्मक दृष्टिकोण और सीखने की इच्छा जागृत करने की ।
सरल शब्दों में कहें तो हमारे धार्मिक ग्रन्थ, समाज, फिल्म, जीवन के नायक/अच्छे व्यक्ति ही नहीं अपितु खलनायक भी हमें बहुत बड़ी सीख देते हैं बस हमें सीखने की दृष्टि विकसित करनी होगी।
सुविचार संग्रह (suvicharsangrah.com) पर एक लेख प्रकाशित हुआ था रामायण के खलनायकों से ग्रहण करने योग्य शिक्षा पर और आज इस लेख के माध्यम से सुविचार संग्रह (suvicharsangrah.com) पर हम एक दृष्टि डालेंगे महाभारत के कुछ पात्रों पर जिसमें नायक और खलनायक दोनों ही सम्मिलित किये गये हैं ।
१. भीष्म पितामहः :- कभी भावनाओं के अधिन ऐसा वचन न लें कि हमको अधर्मियों के आगे समर्पण करना पड़े।
२. धृतराष्ट्र :- यदि हम महाभारत का अध्ययन नहीं किये हैं यदि दूरदर्शन पर प्रसारित महाभारत धारावाहिक का थोड़ा भी अंश देखे हैं या धृतराष्ट्र के बारे में अंश मात्र भी जानते हैं तो उनके जीवन और पात्र से एक बहुत बड़ी शिक्षा हमें यह मिलती है कि -- यदि हमने अपनी संतानों की नाजायज माँग और हठ को समय से नियंत्रित नहीं किया तो एक समय ऐसा आयेगा जब हम खुद को हम इतना असहाय पायेंगे कि चाह कर भी सत्य की दिशा में कुछ नहीं कर पायेंगे। इसके साथ ही धृतराष्ट्र के जीवन से दुसरी अत्यंत महत्वपूर्ण शिक्षा मिलती है कि -- अंध व्यक्तित्व अर्थात केवल नेत्रों से ही दृष्टिहीन नहीं बल्कि मुद्रा, मदिरा, अज्ञान, मोह और काम में अंधे व्यक्ति के हाथ में सत्ता भी विनाश की ओर ले जाती है ।
३. कर्ण :- हम कितने भी ज्ञानी औए शक्तिशाली क्यों ना हों परन्तु यदि अधर्म के साथ रहेंगे , तो हमारी विद्या, अस्त्र - शस्त्र, शक्ति और वरदान सब असफल/व्यर्थ हो जायेगा ।
४. अश्वत्थामा :- हम इतने महत्वाकांक्षी न बन जायें कि विद्या का दुरुपयोग कर स्वयं सर्वनाश को आमंत्रण दे दें ।
५. दुर्योधन :- संपत्ति, तालत और सत्ता का दुरुपयोग और दुराचारियों के साथ का परिणाम अंततः स्वयं का सर्वनाश ही है।
६. शकुनि :- प्रत्येक कार्य में छल, कपट, व प्रपंच रच कर हम सदैव सफल नहीं हो सकते ।
७. कृष्ण :- धर्म, सत्य और मानवता की रक्षा के लिए उठाया गया हर कदम सही है। (वर्तमान समय में कानून अपने हाथ में अवश्य ही लिया नहीं जा सकता।)
८. युधिष्ठिर :- यदि हम नीति, धर्म व कर्म का सफलता व ईमानदारी से पालन करें तो विश्व की कोई भी शक्ति हमें पराजित नहीं कर सकती ।
९. अर्जुन :- व्यक्ति की विद्या यदि विवेक से बँधी हो तो विजयश्री का ताज मिलना सुनिश्चित है ।
सुविचार संग्रह (suvicharsangrah.com) पर प्रकाशित यह लेख लेखक का व्यक्तिगत विचार है, इसका विरोधाभास/अपवाद वर्तमान समय में सम्भव है ।
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