संयुक्त परिवार सामान्यतः एक बृहत् परिवार है। एकल परिवारों का ऐसा समूह जिसके सदस्यों की रसोई,पूजा एवं संपत्ति सामूहिक होती है उसे ही सयुंक्त परिवार कहते है। संयुक्त परिवार के अंतर्गत दादा, दादी, माता- पिता, चाचा- चाची और उनके बच्चे सभी साथ रहते हैं।
कभी संयुक्त परिवार को ही सम्पूर्ण परिवार माना जाता था, परन्तु वर्तमान समय में एकल परिवार को एक फैसन के रूप में देखा जा रहा है। हमारे देश में भी पश्चिमी सभ्यता के अनुरुप आज एकल परिवार की मान्यता बढती जा रही है आर्थिक विकास के सपने में संयुक्त परिवारों का बिखरना जारी है। परन्तु आज भी संयुक्त परिवार का महत्त्व कम नहीं आँका जा सकता है।
परंपरागत कारोबार या खेती बाड़ी की अपनी सीमायें होती हैं जो परिवार के बढ़ते सदस्यों के लिए सभी आवश्यकतायें जुटा पाने में असमर्थ होती जा रही हैं जिससे परिवार को नए आर्थिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ती है। जब अपने गाँव या छोटे शहर में नयी सम्भावनायें कम प्रतीत होने लगती हैं तो परिवार की नयी पीढ़ी को राजगार की तलाश में अन्यत्र जाना पड़ता है और वहीँ अपना परिवार बसाना होता है।
संयुक्त परिवार टूटने का सबसे बड़ा कारण यह भी है कि आपसी सामंजस्य की कमी है। मनुष्य की वृति अब ऐसी हो गयी है कि वह सिर्फ अपना भला सोचने लगा है आज कोई भी आपस में सामन्जय बना के चलना ही नहीं चाहता है, कभी जब किसी परिस्थिति वश त्याग करने की बात आती है तो सब पीछे हटने जाते हैं। आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो की बचपन में पढ़े नैतिक और सामाजिक शिक्षा के पाठो को भूले नही है और उनका पालन करते है इसीलिए आज नाममात्र के संयुक्त परिवार अस्तित्व में हैं। बचपन में हमे कृतज्ञता, ईमानदारी, लालच का फल, सहायता करना ये सब सिखाया जाता था जिसे लोग व्यावहारिक रूप से संपन्न रहने की कोशिश करते थे परन्तु आज ये सब व्यर्थ हो जाता है। आज हम स्वार्थी हो चुके हैं और केवल अपने बारे में सोचने लगते हैं इसलिए संयुक्त परिवारों का पतन होता जा रहा है। संयुक्त परिवार को बनाये रखने में आपसी प्रेम का भाव होना बहुत आवश्यक है जिसके लिए छोटी छोटी बातों को भूल कर आगे बढ़ा बढना पड़ता है क्योंकि ये छोटी छोटी बाते दिल में घर कर जाती हैं तो प्रेम को द्वेष में बदलने में समय नहीं लगता है और फिर टूट जाता है संयुक्त परिवार।
परिवार के जो लोग स्वार्थी होते हैं वे इन छोटी छोटी बातों को सींच कर बड़े बड़े वृक्षो में बदल देते हैं फिर इन्ही वृक्षो की लकड़ीया दिवार बन कर परिवार को अलग कर देती हैं।
संयुक्त परिवार में बच्चों का समुचित पालन - पोषण होता है। ऐसे परिवार में वृद्ध सदस्य जैसे- दादा, दादी, नाना, नानी भी होते हैं जो कठोर परिश्रम तो नहीं कर पाते परंतु सरलता से बालकों की देखभाल करते हैं। उनका सामाजिकरण एवं शिक्षण में भी बहुत बड़ा योगदान होता हैं। सहयोग और सामंजस्य बच्चा परिवार से ही सीख जाता है। वर्तमान में एकाकी परिवारों में पति पत्नी दोनों के कामकाजी होने की स्थिति में बच्चों के समुचित देख रेख में बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न हो रही है।
संयुक्त परिवार में सभी सदस्य एक दूसरे के आचार व्यव्हार पर निरंतर नजर बनाये रखते हैं ,किसी की अवांछनीय गतिविधि पर अंकुश लगाते हैं कोई भी सदस्य असामाजिक कार्य नहीं कर पता ,बुजुर्गों के भय के कारण शराब जुआ या अन्य कोई नशा जैसी बुराइयों से बचने का प्रयास करता है और कुछ भी हो हर बड़े ओर छोटे का पूरा प्यार और दुलार मिलता हैं।
संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों की आवश्यकतानुसार चाहे वह कमाता हो या नहीं, धन खर्च किया जाता है। कर्ता के नियंत्रण के द्वारा अनावश्यक खर्चों से बचा जाता है। परिवार में आय और संपत्ति पर किसी भी सदस्य का विशेषाधिकार नहीं होता है इसलिए सभी सदस्य समान रूप से लाभ प्राप्त करते हैं। सभी अपनी क्षमता अनुसार आय प्रदान करते हैं और आवश्कतानुसार खर्च करते हैं।
संयुक्त परिवार में सभी सदस्य सम्मिलित रूप से रहते हैं जिससे संपत्ति के विभाजन का प्रश्न ही नहीं उठता है। इस प्रकार संयुक्त संपत्ति का उपयोग व्यापार अथवा किसी धंधे में करके संपत्ति में और अधिक बढ़ोतरी की जा सकती है। संयुक्त संपत्ति होने के कारण अनावश्यक खर्चों पर भी रोक लगी है और कोई भी उस संपत्ति का मनमाना प्रयोग नहीं कर सकता। अतः संयुक्त परिवार में संपत्ति की सुरक्षा भी होती हैं।
संयुक्त परिवार में सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य दिए जाते हैं। इस प्रकार संयुक्त परिवार में पुरुष धन उपार्जन का कार्य करते हैं और स्त्रियां बालकों के पालन पोषण का कार्य तथा घर की देखभाल करती हैंऔर आर्थिक क्रियाओं में भी योगदान देती हैं।
परन्तु इन सभी फायदों के बावजुद वर्तमान समय में संयुक्त परिवारों की जो स्थिति है वह अत्यन्द दयनीय और चिन्तनीय हो गयी है। आज संयुक्त परिवार में जो इसका निर्वाह करने और सामाजिक मर्यादा बचाने का प्रयास कर रहा है उसे मानसिक, आर्थिक, शारीरिक हर स्तर पर क्षति ही उठानी पड रही है वह सब कुछ खर्च करके भी परिवार के सदस्यों के नजर में मुर्ख के समान है अन्य सदस्यों से जैसे कोई मतलब ही नहीं रहता है, परिवार के बाकी सदस्य महज अपनी स्वार्थ पुर्ती में हैं । संयुक्त परिवार में महिलाओं की स्थिति और भी भयावह होती जा रही है भोजन बनाने तक के कार्य के लिए एक दुसरे का हाथ बँटाने के स्थान पर एक दुसरे से उम्मीद की जाती है किसी की तथाकथित तबीयत खराब हो जाती है तो कोई अपने शरीर से सदस्यों की गिनती करता है । घरों में आज सुनाने और करवाने को सब तैयार हैं मगर कोई सुनने और करने को राजी कोई नहीं है। रिश्तों की मजबूती के लिये हमें सुनाने और करवाने की ही नहीं अपितु सुनने और करने की आदत भी डालनी पड़ेगी।
माना कि हम सही हैं मगर परिवारिक शान्ति बनाये रखने के लिये बेवजह सुन लेना भी कोई जुर्म नहीं बजाय इसके कि अपने को सही साबित करने के चक्कर में पूरे परिवार को ही अशांत बनाकर रख दिया जाये। अपनों को हराकर हम कभी नहीं जीत सकते, अपनों से हारकर ही हम उन्हें जीत सकते हैं।
लेकिन वर्तमान परिवेश में उस सदस्य को महिला या पुरुष जो हर तरह से त्याग करता आ रहा है परिवार के अन्य सदस्यों के नजर में वह मुर्ख समझा जाता है और उसकी इस भावना का पूर्णतया दुरुपयोग करते हुए उसका शोषण किया जाता है ।
यह लेखक का निज विचार है गलती/अपवाद सम्भव है ।
सुविचार संग्रह (suvichar sngrah.com) पर समय दे कर पुरे लेख को पढने के लिए आप सभी देवतुल्य पाठकों का आभार एवं आर्शीवाद स्वरूप सुझाव व मार्गदर्शन की आकांक्षा।
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