परिवार में सब लोग एक स्वभाव के नहीं होते। पुर्व जन्मों से संग्रह अनुसार उनके स्वयं के स्वभाव-संस्कार होते हैं । अतः परिवार का मुखिया अपनी रूचि के अनुसार परिवार के सभी सदस्यों को मिट्टी के खिलौने की तरह नहीं ढाल सकता है । इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति उस व्यक्ति को ही स्वीकार करते हैं जिससे अधिक से अधिक सामंजस्य बनाया जा सके जिससे स्नेह-सद्भाव और सहयोग की कोमल श्रृंखला में वे परस्पर बॅंधें रहें। परिवार के सदस्यॊं के अवांछनीय दोष और दुर्गुणों के निरावरण एवं सत्प्रवृत्तियों के सम्वर्धन का उत्तरदायित्व चालाक व्यक्ति इस प्रकार निर्वाह करते हैं कि साँप भी मर जाय और लाठी भी न टूटे। हमें ध्यान रखना चाहिए कि सुधार की उग्रता इतनी भी न हो कि स्नेह-सद्भाव का धागा टूटने और मोती बिखरने की स्थिति हो जाय । परिवार के मुखिया द्वारा परिवार के सदस्यों की उतनी उपेक्षा भी न की जाय कि हर व्यक्ति अनियन्त्रित होकर अपनी मनमानी करने लगे और परिवार का उद्देश्य ही नष्ट हो जाय।
परिवार के रुप में छोटे समूह को स्नेहसिक्त, संतुलित, प्रगतिशील, और सुसंस्कारी बनाने के लिए बीच का मार्ग और आदर्शवादी विधि-व्यवस्था अपनानी पड़ती है। जो इस सन्तुलन का अभ्यस्त हो जाता है उसे परिवारिक सुख की कमी नहीं रहती। भले ही परिवार के सभी व्यक्ति उतने सुसंस्कारी न हों।
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