वास्तविक_गुरू_कौन_?
विचार_करें ।
#बिना_पढ़े_पसंद_या_टिप्पणी_ना_करें
"गुरू जी" एक बहुत ही सम्मानित शब्द है।
जिसके सम्मान में हमारा मस्तक स्वतः श्रद्धा से झुक जाए। जो अज्ञानरूपी अन्धकार को मिटा दे, उसका नाम "गुरू" है।
लेकिन, मुझे लगता है कि शायद हम लोगों ने आजकल गुरू की परिभाषा ही बदल दी है।
जहाँ तक मैं समझता हूँ कि आज के समय में हम लोग अपने असली गुरू को भूलकर सिर्फ और सिर्फ नकली गुरूओ के मोहजाल मे फंसते जा रहे हैं जो टेलिविजन आदि के माध्यम से अपना माया जाल फैलाकर हमे दिगभ्रमित कर देते हैं।
वास्तविक एवं पहले गुरू हमारे माता- पिता होते हैं।
दुसरे गुरू हमारा परिवार व परिवेश
तीसरे गुरू हमारे शिक्षक
और चौथे गुरू हमारे परमपिता परमात्मा होते हैं।
इनके अलावा मुझे और किसी गुरू के बारे मे पता नहीं है।
( ये मेरे स्वयं के विचार है।)
अब शास्त्रो के कथन पर विचार करें गुरू के विषय में :-
गुरू को चाहिए कि वह शिष्य को पुत्र की तरह मानता हुआ, उसकी उन्नति की इच्छा करता हुआ, धर्मो के रहस्य गुप्त न रखते हुए उसे विद्या प्रदान करे।
अकेले गुरू से ही यथेष्ट और सुदृढ़ बोध नहीं होता । उसके लिए अपनी बुद्धि से भी बहुत कुछ सोचने समझने की आवश्यकता है।
" यदि हम स्वयं विचार कर निर्णय नही करेंगे, तो ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप को कैसे जान सकेंगे?
कहीं कहीं शास्त्रो में स्वंय के "विवेक" को ही जन्मजात गुरू कहा गया है।
अर्थात हम गुरू से शिक्षा तो हासिल कर सकते है,परन्तु ब्रह्म के स्वरूप को जानने के लिए अपनी ही बुद्धि का इस्तेमाल करना होगा ।
यदि हम भगवान राम, कृष्ण, हनुमान, सुदामा, पाण्डव के जीवनी पर नजर डाले तो यहाँ भी यही बात सामने आती है कि, उन्होने भी सिर्फ अध्ययन करने के लिए ही अपने अपने गुरूओं की शरण ली थी।
मित्रों, मेरा उदेश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नही है।
मैं यह भी नही कहता हुँ कि मेरा यह पोस्ट १००% सही है, शायद मै गलत भी हो सकता हुँ।
मित्रों, आज कुछ गलत लोगो ने हमारे देश की संस्कृति को नाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। जिस कारण अत्यन्त दुःख होता है।
सुविचार संग्रह (suvicharsangrah.com) पर अपना समय देने/लेख पढने के लिए दिल से आभार।
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